‘Ek Dost Ke Naam’, a nazm by Parveen Shakir
लड़की!
ये लम्हे बादल हैं
गुज़र गए तो हाथ कभी नहीं आएँगे
इन के लम्स को पीती जा
क़तरा-क़तरा भीगती जा
भीगती जा तू जब तक इन में नम है
और तिरे अंदर की मिट्टी प्यासी है
मुझ से पूछ
कि बारिश को वापस आने का रस्ता कभी न याद हुआ
बाल सुखाने के मौसम अनपढ़ होते हैं!
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