मैं सही शब्दों की तलाश करूँगा
लिखूँगा एक मौसम,
एक सत्य कहने में
दुःख का वृक्ष भी सूख जाता है
घर जाने वाली सभी रेल
विलम्ब से चल रही हैं,
छिलके उतार रहा हूँ
मूँगफली के दानों के,
यह मेरे लिए सबसे सूक्ष्म श्रम है
मैं आदमी से नहीं
शहर से पीछा छुड़ाने के लिए
कविताएँ लिखता हूँ,
मैंने प्रेम कविताएँ लिखीं
और पटना को धोखा दिया
दीवार पर धूप के टुकड़े की याद में
रोता आदमी
घर से दूर आत्मीयता के किसी क्षण में
एक भीगते पत्ते की तरह हिलता है…
रोहित ठाकुर की कविता 'एक जाता हुआ आदमी'