‘Ek Patr Amitron Ke Naam’, by Nirmal Gupt

हे अमित्रों,

अब मैं वहाँ हूँ जहाँ से किसी को किसी की ख़बर नहीं आती। यहाँ हँसने-रोने को लेकर कोई आचार संहिता नहीं है। पर यह बात सुनने में आयी है कि स्वर्ग में कुछेक लाफ़्टर क्लब चलते हैं, वहाँ स्वर्गवासी सुबह-शाम इकट्ठा होकर आयुर्वेदिक ठहाकों का नियमित सेवन करते हैं।

बताता चलूँ कि तुम लोगों की तमाम दुआओं या बद्दुआओं के बावजूद, न तो मुझे स्वर्ग में जगह मिली, न नर्क में एडमीशन मिला। इन दोनों जगहों में मेरी अहर्ताएँ अपर्याप्त पायी गयीं। मैं इन दो स्थानों के दरम्यान ख़ाली पड़ी स्पेस में मज़े से रह रहा हूँ। सोशल मीडिया के तमाम आकार-प्रकार के एक्टिविस्ट यहीं बरामद होते हैं। यह ग़ज़ब जगह है। यहाँ कबीर और उनका पूत कमाल एक साथ रहते हैं। कट्टर और सहिष्णु अगल-बग़ल रहते हैं। प्रगतिशील और ढपोर शंख एक ही डोरमेट्री में मज़े करते हैं। पिंगलशास्त्र के हिमायती कठिन अकविता के प्रेतों को हँसते-हँसते झेल लेते हैं।

बाक़ी तो यहाँ सब ठीक-ठाक है। मौसम ख़ुशगवार रहता है। किसी तरह की कोई पाबंदी नहीं है। ड्रेस कोड भी यहाँ नहीं है। यहाँ बेहद खुलापन है। रूहें कोई पोषाक नहीं पहनतीं क्योंकि उनके नाप के पैरहन अभी बनने शुरू नहीं हुए। तुम्हारी धरती पर बनने लगे हों तो बताना। हम लोग डिज़ाइनर पहनावे आयात करने की बात आगे चलाएँगे। जब से यहाँ आया हूँ, तब से मुझे मित्र मंडली से अधिक अमित्रगण की बड़ी याद आती है।

आप लोगों को अपनी रवानगी की ख़बर न दे सका। खेद है। मित्रों को तो जैसे-तैसे यह सूचना मिल ही गयी होगी। सोचता हूँ, उन्होंने उस जानकारी को अँगूठा छाप ‘लाइक’ भी जताया ही होगा। कुछेक होंगे, जिन्होंने वाओ, दिल अथवा रोनी सूरत वाली इमेज उस पर चस्पा की होगी। कुछ ने शायद मन ही मन कहा होगा कि पाँच हज़ार वाली मित्र सूची लिए बड़ा इतराता फिरता था, पर बाद मरने के लाइक निकले सिर्फ़ 103। लो कल्लो बात!

बाक़ी जो है, सो है लेकिन यहाँ जिसे देखो वो हाथ जोड़े खीसे निपोरता मिलता है। सच तो यह है कि यहाँ वाली सद्भावना बड़ी बोरिंग क़िस्म की है। सुनते हैं कि स्वर्ग का तो हाल यहाँ से भी बुरा है। वहाँ तो हरदम लोबान, चन्दन और हवन सामग्री की गंध मौजूद रहती है। वहाँ भजन और भक्ति संगीत के अलावा किसी अन्य तरह के म्यूज़िक पर पूर्ण मनाही है। मुझे यह कहने में संकोच नहीं कि यहाँ का माहौल सम्भवतः ज़रा कम्युनल टाइप का है।

अब तो यह भी पता लगा है कि स्वर्ग को विभाजित करने की पुरज़ोर माँग उठ रही है। वहाँ सेक्युलर पृथक जन्नत की बात उठा रहे हैं। स्वर्गवासी और जन्नती अलग-अलग रहेंगे, तभी तो प्रार्थना और इबादत की शुचिता बनी रहेगी। दोनों यहाँ साथ-साथ रहते-रहते उकता-सा गये हैं।

आप सभी की जानकारी में इज़ाफ़ा करता चलूँ कि यहाँ जो नर्क है, वह वैसा नहीं जिसका विवरण सुन हम लोगों की रूह काँप जाया करती थी। मेरे पास कन्फ़र्म सूचना है कि नर्क तो बिल्कुल तुम्हारी दुनिया जैसा है। सेम-टू-सेम। जब स्वर्ग का पार्टीशन होगा तो शायद नर्क और दोज़ख़ भी अलग-अलग बसें ताकि किसी को कोई असुविधा न हो। कौन स्वर्ग, जन्नत, दोज़ख़ या नर्क में रहेगा, यह शायद यहाँ पहुँची हुई आत्माएँ ख़ुद तय करेंगी। हो सकता है कि रिहाइश लॉटरी सिस्टम से आवंटित हो। इस आवंटन में आरक्षण का गणित चलेगा या सोर्स-सिफ़ारिश चलेगी, अभी यह बात क्लीयर नहीं।

एक बात और, यह जो बीच वाली स्पेस है, इसमें तमाम तरीक़े की दिलचस्प दुश्वारियाँ और मज़ेदार सहूलियतें है। पर यहाँ एक बात जो स्वर्ग और नर्क से ज़रा हटकर है, वह यह कि यहाँ कभी-कभी नेट की कनेक्टिविटी मिल जाती है। हम लोग इसी वजह से शेष ब्रह्माण्ड से थोड़ा-बहुत जुड़े रह लेते हैं। आप लोग को जब वहाँ से यहाँ आना हो तो सीधे यहीं चले आना। सोशल मीडिया के डिजिटल क्रांतिवीर यहीं रहते हैं। यहाँ भक्तों और अभक्तों के लिए अलग-अलग कॉलोनी का प्रावधान नहीं हैं। यहाँ लोग एक दूसरे से डिबेट करते और परस्पर असहमति के अहंकार के साथ लड़ते-झगड़ते मस्ती से रह लेते हैं। स्वर्ग और नर्क में तो इन मुद्दों पर सदैव बड़ी चिकचिक मची रहती है। बकलोली के मामले में स्वर्ग और नर्क में रत्ती भर भी फ़र्क़ नहीं।

अमित्रों, यहाँ आना तो अनलिमिटेड डाटा वाले कुछ सिम ज़रूर लेते आना। यहाँ सदा सर्वदा ख़ुद को ‘लाइव’ रखने वाले साजो सामान की बड़ी किल्लत बनी रहती है। बन पड़े तो चंद सेल्फ़ी स्टिक और हाई पिक्सल कैमरे वाले मोबाइल भी ले आना। बड़े दिन हुए मुँह बिचकाए। मेरा मन यहाँ आकर बार-बार ‘लाइव’ होने के लिए बड़ा तरसता है।

इस ख़त को हल्के में न लेना। किसी आते-जाते के हाथ इत्तिला देना कि तुम लोग यहाँ कब पहुँच रहे हो। आओगे तो धमाल होगा, यहाँ उपदेश सुनते-सुनते मन बड़ा ऊब गया है।

आप लोगों के यहाँ पहुँचने का इंतज़ार करता-

बाक़ायदा आपका अमित्र!

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निर्मल गुप्त
बंगाल में जन्म ,रहना सहना उत्तर प्रदेश में . व्यंग्य लेखन भी .अब तक कविता की दो किताबें -मैं ज़रा जल्दी में हूँ और वक्त का अजायबघर छप चुकी हैं . तीन व्यंग्य लेखों के संकलन इस बहुरुपिया समय में,हैंगर में टंगा एंगर और बतकही का लोकतंत्र प्रकाशित. कुछ कहानियों और कविताओं का अंग्रेजी तथा अन्य भाषाओं में अनुवाद . सम्पर्क : [email protected]

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