एक शाम सिर्फ़ अँधेरे से सजाई जाये
हवाएँ दबे पाऊँ आकर
स्लाइडिंग की दराज़ों में
बैठ जाएँ
तुम्हारी पिंडिलयों पर
मेरे पैर का अंगूठा लिख रहा हो
रात का सियाह गुदाज़ लफ़्ज़
तुम्हारी दाईं उँगलियों के नाख़ुन मेरे कंधे पर
गड़ रहे हों एक अन-कहे हर्फ़ की लज़्ज़त
होंठ तुम्हारे
दायरे की शक्ल में ढल कर
बन जाएँ फड़कती हुई आँख
या फिर कपकपाती हुई शम्मा की लौ
और मैं तुम्हारी गर्दन की साँवली
तितलियों का रंग चखूँ
तब तक, जब तक ये रंग मेरे तलवों तक भर कर
छलकने न लगें
और कमरे में अंगड़ाई लेकर जाग उठे
दुनिया की सबसे रंगीन सहर!
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