लम्बे क़द और डबलंग चेहरे वाले चाचा रामशरण के लाख विरोध के बावजूद आशू का विवाह वहीं हुआ। उन्होंने तो बहुत पहले ही ऐलान कर दिया था कि ‘लड़की बड़ी बेहया है।’

आशू एक व्यवहार-कुशल आदर्शवादी नौजवान है, जिस पर मार्क्स और गाँधी दोनों का गहरा प्रभाव है। वह स्वभाव से शर्मीला या संकोची भी है। वह संकुचित विशेष रूप से इसलिए भी था कि सुहागरात का वह कक्ष फ़िल्मों में दिखाए जाने वाले दृश्य के विपरीत एक छोटी अँधेरी कोठरी में था, जिसमें एक मामूली जंगला था और मच्छरों की भन-भन के बीच मोटे-मोटे चूहे दौड़ लगा रहे थे।

लेकिन आशू की समस्या इस तरह दूर हुई कि उसके अंदर पहुँचते ही गौरा नाम की दुल्हन ने घूँघट उठाकर कहा, “लीजिए मैं आ गई। आप जहाँ रहते, मैं वहीं पहुँच जाती। अगर आप कॉलेज में पढ़ते होते और मैं भी उसी कॉलेज में पढ़ती होती तो मैं ज़रूर आपके प्रेम बंधन में बँध गई होती। आप अगर इंग्लैंड में पैदा होते तो मैं भी वहाँ ज़रूर किसी-न-किसी तरह पहुँच जाती। मेरा जन्म तो आपके लिए ही हुआ है।”

कोई चूहा कहीं से कूदा, खड़-खड़ की आवाज़ हुई और उसके कथन में भी व्यवधान पड़ा। वह फिर बोलने लगी, “मेरे बाबूजी बड़े सीधे-सादे हैं। इतने सीधे हैं कि भूख लगने पर भी किसी से खाना न माँगें। इसलिए जब वह खाने के पीढ़े पर बैठते हैं तो अम्मा कहीं भी हों, दौड़कर चली आती हैं। वह ज़िद करके उन्हें ठूँस-ठूँसकर खिलाती हैं, उनकी कमर की धोती ढीली कर देती हैं ताकि वह पूरी खुराक ले सकें। हमारे बाबूजी ने बहुत सहा है। लेकिन हमारी अम्मा भी बड़ी हिम्मती हैं।”

वह चुप हो गई। उसे संदेह हुआ था कि आशू उसकी बात ध्यान से नहीं सुन रहा है। पर ऐसी बात नहीं थी। वस्तुतः आशू को समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या कहे। फिर उसकी बातें भी दिलचस्प थीं।

उसका कथन जारी था, “बाबूजी असिस्टेंट स्टेशन मास्टर थे। बड़े बाबू दिन में ड्यूटी करते थे और हमारे बाबूजी रात में। एक बार बाबूजी को नींद आ गई। प्लेटफ़ॉर्म पर गाड़ी आकर खड़ी हो गई। गाड़ी की लगातार सीटी से बाबूजी की नींद खुली। गार्ड अंग्रेज़ था, बाबूजी ने बहुत माफ़ी माँगी, पर वह नहीं माना। यह डिसमिस कर दिए गए। नौकरी छूट गई, गाँव में आ गए। खेती-बारी बहुत कम होने से दिक्कत होने लगी। बाबूजी ने अपने छोटे भाई के पास लिखा मदद के लिए तो उन्होंने कुछ फटे कपड़े बच्चों के लिए भेज दिए। यह व्यवहार देखकर बाबूजी रोने लगे।”

इतना कहकर वह अँधेरे में देखने लगी। आशू भी उसे आँखें फाड़कर देख रहा था। यह क्या कह रही है? और क्यों? क्या यह दुख-कष्ट बयान करने का मौक़ा है! न शर्म और संकोच, लगातार बोले जा रही है!

उसने आगे कहना शुरू किया, “लेकिन मैंने बताया था न, मेरी माँ बड़ी हिम्मती थी। एक दिन वह भैया लोगों को लेकर सबसे बड़े अफ़सर के यहाँ पहुँच गई। भैया लोग छोटे थे। वह उस समय गई जब अफ़सर की अंग्रेज़ औरत बाहर बरामदे में बैठी थी। अम्मा का विश्वास था कि औरत ही औरत का दर्द समझ सकती है। अफ़सर की औरत मना करती रही, कुत्ते भी दौड़ाए पर अम्मा नहीं मानी और दुखड़ा सुनाया। अंग्रेज़ अफ़सर की पत्नी ने ध्यान से सब कुछ सुना। फिर बोली, ‘जाओ हो जाएगा’। अम्मा गाँव चली आयी। कुछ दिन बाद बाबूजी को नौकरी पर बहाल होने का तार भी मिल गया। तार मिलते ही बाबूजी नौकरी जॉइन करने के लिए चल पड़े। पानी पीट रहा था पर वह नहीं माने, बारिश में भीगते ही स्टेशन के लिए चल पड़े।

उनकी रुहेलखंड रेलवे में नियुक्ति हो गई। बनबसा, बरेली, हलद्वानी, काठगोदाम, लालकुआँ। हम लोग कई बार पहाड़ों पर पैदल ही चढ़कर गए हैं। भीमताल की चढ़ाई, राजा झींद की कोठी। उधर के स्टेशन क्वार्टरों की ऊँची-ऊँची दीवारें। शेर-बाघ, जंगली जानवरों का हमेशा ख़तरा रहता है। एक बार हम लोग जाड़े में आग ताप रहे थे तो एक बाघ ने हमला किया, लेकिन आग की वजह से हम लोग बाल-बाल बच गए। वह इस पार से उस पार कूदकर भाग गया।”

वह रुककर आशू को देखने लगी। फिर बोली, “मैं तभी से बोले जा रही हूँ… आप भी कुछ कहिए…।”

आशू सकपका गया फिर धीमे से संकोचपूर्वक बोला, “मैं… मेरे पास कहने को कुछ ख़ास नहीं है। हाँ, मैं लेखक बनना चाहता हूँ… मैं लोगों के दुःख-दर्द की कहानी लिखना चाहता हूँ, लेकिन मेरे अंदर आत्मविश्वास की कमी है। पता नहीं, मैं लिख पाऊँगा कि नहीं…।”

“क्यों नहीं लिख पाएँगे? ज़रूर लिखेंगे। मेरी वजह से आपके काम में कोई रुकावट न होगी। मुझसे जो भी मदद होगी, हो सकेगी, मैं ज़रूर दूँगी… आप निश्चिंत रहिए। मेरे भैया ने कहा है कि तुम्हें अपने पति की हर मदद करनी होगी… जिससे वह अपने रास्ते पर आगे बढ़ सकें…। मुझे अपने लिए कुछ नहीं चाहिए… आप जो खिलाएँगे और जो पहनाएँगे, वह मेरे लिए स्वादिष्ट और मूल्यवान होगा। आप बेफ़िक्र होकर लिखिए, पढ़िए… आपको निरंतर मेरा सहयोग प्राप्त होगा…।”

उसकी आँखें भारी हो रही थीं और अचानक वह नींद के आग़ोश में चली गई।

आशू कुछ देर तक उसके मुखमंडल को देखता रहा। वह सोचने लगा कि गौरा नाम की इस लड़की के साथ उसका जीवन कैसे बीतेगा… लेकिन लाख कोशिश करने पर भी वह सोच नहीं पाया। वह अँधेरे में देखने लगा।

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अमरकान्त
अमरकांत (1925 - 17 फ़रवरी 2014) हिंदी कथा साहित्य में प्रेमचंद के बाद यथार्थवादी धारा के प्रमुख कहानीकार थे। यशपाल उन्हें गोर्की कहा करते थे।

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