गद्य-वद्य कुछ लिखा करो। कविता में क्या है।
आलोचना जगेगी। आलोचक का दरजा –
मानो शेर जंगली सन्नाटे में गरजा
ऐसा कुछ है। लोग सहमते हैं। पाया है
इतना रुतबा कहाँ किसी ने कभी। इसलिए
आलोचना लिखो। शर्मा ने स्वयं अकेले
बड़े-बड़े दिग्गज ही नहीं, हिमालय ठेले,
शक्ति और कौशल के कई प्रमाण दे दिए
उद्यम करके कोलतार ले लेकर पोता,
बड़े-बड़े कवियों की मुख छवि लुप्त हो गई,
गली-गली मे उनके स्वर की गूँज खो गई,
लोग भुनभुनाए घर में इससे क्या होता!
रुख देखकर समीक्षा का अब मैं हूँ हामी,
कोई लिखा करे कुछ, अब जल्दी होगा नामी।
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