मेरे दिल की सतह पर टार जम गया है
साँस खींचती हूँ
तो खिंची चली आती है
कई टूटे तारों की राख
जाने कितने अरमान निगल गयी हूँ
साँस छोड़ती हूँ
तो बढ़ने लगता है
धरती का तापमान
तुम तो सूरज ही थे
तुम्हारे तेज से जीवित थे
सब पौधे, कीट, पशु व इंसान
मेरे शरीर को मगर
जकड़ लिया कार्बन डाइऑक्साइड और मीथेन ने
तुम्हारा हर लाल शब्द
जो कल तक मुझे छूकर
लौट जाता था
अपने स्त्रोत पर
अब सोख लिया जाता है
तुम जो प्रेम की वर्षा भी करते हो
तो ये संगेमरमर की बांहें काली हुई जाती हैं
कल लोग मुझे देखकर
आँखें फेर लें
या मेरा जलता बदन
लहू में सुनामी उठा दे
और फूट पड़ें सब शिराएँ, सब धमनियाँ
तो तुम खुद को दोष मत देना
तुम तो सूरज ही हो
यह तो मैं ही थी
जो ली महत्वकांक्षाओं की कुल्हाड़ी
और भावनाओं को काटती गयी
हमारे बीच की गर्माहट
कब ग्लोबल वॉर्मिंग हो गयी
पता ही नहीं चला…
That’s another masterpiece from you. ..
Kamal ke Aur bahut naye bimb hain shiva ?
Climate change ko saalo se padh rahi hun. Magar is tarah pahli baar padha hai. Un logon ko sunane ka man kar raha hai jo rishto aur dharti, dono hi ka mulya samajh nahin paate. Is se zyada khubsurat kisi tragedy ka description possible hi nahin hai Shiva.
You are an inspiration 🙂
Hey Ghaniya! So happy that you understood and liked it 🙂 Will try not disappointing you in future too!
वाह! बहुत ही ख़ूबसूरत। दिल को छु गयीं ये रचना। Well Done.
Thanks Deepika di. Love!
Very well written Shiva.
Thank you so much Prasu! Glad you liked it. 🙂
बहुत सुंदर। बहुत खूबी से आपने इस कविता का निष्कर्ष निकाला है।
शुक्रिया कबीर । आपका कमेंट एक वेलिडेशन की तरह है ।