बोले और सुने जा रहे के बीच जो दूरी है
वह एक आकाश है

मैं खूँटी से उतारकर एक कमीज़ पहनता हूँ
और एक आकाश के भीतर घुस जाता हूँ,
मैं जूते में अपना पाँव डालता हूँ
और एक आकाश मोजे की तरह चढ़ जाता है,
मेरे पाँवों पर
नेलकटर से अपने नाख़ून काटता हूँ
तो आकाश का एक टुकड़ा कट जाता है

एक अविभाजित वितान है आकाश
जो न कहीं से शुरू होता है, न कहीं ख़त्म
मैं दरवाज़ा खोलकर घुसता हूँ, अपने ही घर में
और एक आकाश में प्रवेश करता हूँ,
सीढ़ियाँ चढ़ता हूँ
और आकाश में धँसता चला जाता हूँ

आकाश हर जगह एक घुसपैठिया है!

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राजेश जोशी
राजेश जोशी (जन्म १९४६) साहित्य अकादमी द्वारा पुरस्कृत हिन्दी साहित्यकार हैं। राजेश जोशी ने कविताओं के अलावा कहानियाँ, नाटक, लेख और टिप्पणियाँ भी लिखीं। साथ ही उन्होंने कुछ नाट्य रूपांतर तथा कुछ लघु फिल्मों के लिए पटकथा लेखन का कार्य भी किया। उनके द्वारा भतृहरि की कविताओं की अनुरचना भूमिका "कल्पतरू यह भी" एवं मायकोवस्की की कविता का अनुवाद "पतलून पहिना बादल" नाम से किए गए है। कई भारतीय भाषाओं के साथ-साथ अँग्रेजी, रूसी और जर्मन में भी उनकी कविताओं के अनुवाद प्रकाशित हुए हैं। राजेश जोशी के चार कविता-संग्रह- एक दिन बोलेंगे पेड़, मिट्टी का चेहरा, नेपथ्य में हँसी और दो पंक्तियों के बीच, दो कहानी संग्रह - सोमवार और अन्य कहानियाँ, कपिल का पेड़, तीन नाटक - जादू जंगल, अच्छे आदमी, टंकारा का गाना।

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