‘Hastinapur Ke Sainik’, a poem by Nirmal Gupt
हस्तिनापुर से गए थे सैनिक
कुरुक्षेत्र के मैदान में,
वहाँ जाने का मक़सद और
ज़िन्दा बचे रहने की उम्मीद लिए बिना,
हालाँकि उन्होंने तब तमाम मनाहियों के बावजूद
सपने देखने स्थगित नहीं किए थे
हस्तिनापुर से गए थे सैनिक
अस्त्र-शस्त्र और ढोल नगाड़े लिए,
जिनकी उपयोगिता के बारे में
वे सिरे से थे अनभिज्ञ,
उनके भीतर बलबला रही थी
मासूमियत से भरी राजभक्ति
हस्तिनापुर से गए थे सैनिक
अपने बीवी बच्चों को उम्मीद दिलाकर
कि वे जल्द लौट आएँगे वहाँ से
विजयघोष करते, ध्वजा फहराते,
उन्होंने यह सब कहने को कहा था
उनको मालूम नहीं था वापसी का रास्ता
हस्तिनापुर से गए थे सैनिक
अपने राजा की शान की ख़ातिर,
वे वहाँ धर्म और मर्यादा की व्याख्या
सुनने के लिए नहीं आए थे,
सारथी कृष्ण ने धनुर्धर पार्थ से क्या कहा-
उन्हें उसका कुछ पता नहीं
हस्तिनापुर से सैनिक ख़ुद-ब-ख़ुद नहीं गए थे
ले जाए गए थे जबरिया हाँककर,
उनको तो वहाँ मरना ही था अन्ततः
उनके पास न तो कर्ण जैसे कवच-कुण्डल थे
न इच्छा मृत्यु का वरदान
न सुदर्शन चक्र, न कुटिलता का कौशल
हस्तिनापुर से गए सैनिकों के बारे में
इससे अधिक किसी को नहीं पता,
अलबत्ता रजवाड़ों की भव्य वापसी के क़िस्से
हर किसी ने ख़ूब सुने हैं…
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