हे मेरी तुम…
गंगा, गगन और तुम
तीनों स्थिर क्यों हो
क्यों खामोश हो
अपने बदन पर
गर्द-ओ-ग़ुबार को अटते हुए
कुछ बोलते क्यों नहीं
उगते जख्मों पर
समझता हूँ
तुम्हारे कोलाज़ को
मनअन्तस् में दबाए हो
माया हो तुम
चुप होना ही
तुम्हारी मौत है
समेटकर दुखों को
मत करो
एस. एम. एस
इस तरह कि
सब ठीक है…