‘Highway Par Basant’, a poem by Sonu Choudhary

नीले भरम के ठीक नीचे
मक्खन सड़क की रफ़्तार पर
पेनड्राइव की तीखी आवाज़ में
गानों के लिरिक्स
दार्शनिक की तरह
मेरे ज़ेहन पर
हमला करते हैं

ट्रक के पीछे लिखी लाइनों पर
बेवजह मुस्काने के उपक्रम में
गालों पर चुभने लगती है ज़िन्दगी

आँखों में हवा की लहक महसूसते
मैं मोबाइल की तीसरी आँख बन जाती हूँ

ढाबों की चहल-पहल देखते ही
चाय की तलब होने लगती है,
बन्द शीशों में
दिखती खौलती चाय
घूँट-घूँट नीचे उतरती है

क्षण भर के लिए ही सही
मैं आज़ाद हूँ
मंज़िल तक पहुँचने की गिरह से,
भीतर तिरोहित हो रहे
कुछ दृश्य बूझते हैं मुझे,
बाहर ढाबे के ठीक पीछे
ठिठका है
हाइवे का बसन्त।