‘How Heavy The Days’, a poem by Hermann Hesse
अनुवाद: पुनीत कुसुम
(जेम्स राइट के अंग्रेज़ी अनुवाद पर आधारित)
कितने बोझिल हैं दिन!
कोई आग नहीं जो मुझे उष्णता दे सके
न कोई सूरज हँसने के लिए मेरे साथ
सब कुछ ख़ाली
सब कुछ उदासीन और निर्दयी
यहाँ तक कि प्यारे, धवल
सितारे भी एकाकी उदास दिखायी देते हैं
जब से हृदय ने जाना है कि
प्रेम मर सकता है।
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