‘Hum’, a poem by Pranit Paras

तुमनें कहा ख़ुशबू
और फूल खिल गये,
तुम्हें लगी प्यास
और बरस पड़े बादल,
रँग जब कहा तुम ने
तो तितलियाँ ने पाये पंख,
तुमनें देखा ख़्वाब
और चहचहाने लगे परिंदे,
वक़्त जब कहा तुम ने
तो बदलने लगे मौसम,
तुम्हें कर के स्पर्श
तैरने लगी हवा,
जब तुम्हें लगी ठण्ड
तो भभक उठा सूरज,
तुम्हारे शांत रहने पर
रात को मिला चाँद,
तुम ने सोचा जीवन
और बन गई पृथ्वी,
तुम ने सहा दर्द
और बना दिल,
तुम्हारी एक आह पर
उमड़ने लगे समंदर,
जब तुम ने कहा अंत
तो बिखर गए आँसू,
काश तुम ने कभी
कह दिया होता.. हम।

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