“मैंने लिस्ट बनाकर टेबल पर रख दी है। जाकर सारा सामान ले आओ। ऋषि को भी साथ ले कर जाना। और ये लो पैसे…” ये बोलते-बोलते श्रीमती जया तिवारी जी किचन से बाहर आती हैं और रमन को दो हजार का नोट पकड़ा देती हैं। जया जी के दो बेटे हैं रमन और ऋषि। रमन साढ़े सोलह का और ऋषि दस साल का। ऋषि साथ जाएगा मतलब स्कूटी में पीछे बैठकर सामान पकड़ेगा।

रमन सामान की लिस्ट हाथ में लेता है और ऋषि को आवाज देता है। लिस्ट देखते-देखते मन ही मन उसे पढ़ने लगता है “बड़ी झाड़ू-1, छोटी झाड़ू-2, फ्लोर क्लीनर-2 बोतल, फिनाईल-1 बोतल… लिस्ट लंबी है टाइम लगेगा”। और पलटकर बोलता है- “मम्मी पटाखों के लिए पैसे तो दे दो!”

जया जी बिना कुछ बोले आकर 500 का नोट पकड़ा कर चली जाती हैं। ऋषि आता है वो चल देते हैं।

ऋषि चुपचाप बड़ा सा थैला लिए पीछे बैठे-बैठे बाजार की रौनक देख रहा है। दिवाली में बाजारों का अलग ही रंग होता है।

लगभग डेढ़ घण्टे यहाँ-वहाँ अलग-अलग दुकानों में बहुत सामान खरीदते हुए जब वे थक गए तो ऋषि करुणामई आवाज़ में बोला- “भइया अब पटाखे ख़रीदने चलें…”

रमन ने लिस्ट देखी कि अब तो दो-तीन सामान ही बचे हैं। तो चलो पहले पटाखे ले लिए जाएं। वे चल पड़े पटाखा मंडी के ओर। ऋषि पीछे झाड़ू और थैला थामे उत्साहित हो मुस्कुरा रहा था।

पटाखा मंडी के पहले एक चौराहा आया जिसमे बीचों-बीच ऊंचे से चबूतरे पर किसी की मूर्ति थी। उसी के चारों ओर कुछ दूरी पर दिये की बहुत सी छोटी-छोटी दुकानें जमीन पर लगीं थी। रमन के मन में आया पहले दिये ले लिए जाएं, एक काम और खत्म हो। उसने स्कूटी रोक दी। ऋषि थोड़ा गुस्सा हुआ पर चुप रहा।

वे एक दुकान पर रुके जिसमें कम उम्र की बुढ़िया बोरी बिछाए सहज भाव से बैठी हुई थी। दोनो लड़कों को आते देख वो बोली “दिया लोगे बेटवा…” रमन ने मुंडी हिला दी। रमन नीचे झुककर दिये देखने लगा। पर ऋषि की नजरें तो बुढ़िया के बगल में बैठे उसी के उम्र के लड़के पर टिकी रहीं। चेहरे पर धूल की पपड़ी, मैले कपड़े और गम्भीर मुखाकृति। रमन ने देख-छाँटकर दिये पैक करवा लिए। पैसे देने लगा कि तभी ऋषि बुढ़िया की ओर देख कर बोला- “आपके पास इतने सारे दिये हैं, आप तो बहुत दीवाली मनाती होंगी?”

बुढ़िया की आँखें ऋषि पर ठहर गईं। ना जाने कितने चित्र उसके मन में आ गए- बारिश से उखड़ा आंगन, आटे-चावल की खाली टंकियाँ, फटी साड़ियों को जोड़-जोड़ कर बनाये गए बिस्तर, पर्दे और पटाखों की लालसा में चुप आंसू बहाता बगल में बैठा उसका बेटा तो अभी बिल्कुल शांत है। वो अगले ही पल संभलकर बोली- “बेटवा हमारे हिस्से की दीवाली तो तब ही होगी जब ये दिये बिक जाएंगे।”

इतना बोलकर उसने पैसे ले लिए और चुप हो गई। रमन को कुछ-कुछ समझ आया पर ऋषि को कुछ भी समझ नहीं आया। वे आगे बढ़ गए। जहां तक वो लड़का आंखों से ओझल न हुआ तब तक ऋषि उसे देखता रहा।

वे पटाखा मंडी पहुंचे और पटाखे खरीदे। जब वो वहां से बाहर निकले तो उनके पास पटाखों की दो थैलियां थी- एक बड़ी और एक छोटी। वो उसी चौराहे से लौटे, स्कूटी उसी बुढ़िया की दुकान पर रुकी। ऋषि उतरा और उसने बिना कुछ बोले छोटी थैली उस अपने हमउम्र लड़के के सामने बढ़ा दी। उसने बिना कुछ बोले ले ली। चारों मन ही मन मुस्कुरा उठे। स्कूटी में वापस ऋषि बैठा और वे चल दिये।

ऋषि खुश था। रमन सोच रहा था बुढ़िया के हिस्से के न सही पर उस लड़के के हिस्से की दीवाली तो हमने पूरी कर दी।

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