फूल लगते थे गुलमोहर के वो दरखतें अब कहाँ हैं?
पूछते हैं परिंदे मेरे रहने के लिए इमारतें कहाँ हैं?

सुबह खेतों के मज़दूरों से निकल पड़ते थे
वो लम्बी ताएरों की कतारें अब कहाँ हैं?

थक कर लौटा करते थे जब अपने घर
वो शोर करती शामें अब कहाँ हैं?

पूछते हैं परिंदे मेरे रहने के लिए इमारतें कहाँ हैं?

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