मेरे मुल्क में इंक़लाब पर पाबन्दी थी।
बग़ावत के सुर,
उठने से पहले चुप करा दिए जाते थे।
प्रतिरोध में उछलने वाले नारों को,
बदल दिया जाता था,
चीत्कारों में।
क्रांति की भीड़ में,
अक्सर आगजनी हो जाया करती थी।
इसलिए मुझसे इंक़लाब हो न सका,
तो फिर मैंने इश्क़ कर लिया।
और इस तरह लिखी गई बग़ावत की नई दास्तान।

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