अनगिन लहर ही लहर
देख रहा होता हूँ,
शाम देख रहा होता हूँ
या सहर देख रहा होता हूँ

जब मैं तुम्हें देख रहा होता हूँ
तब क्या देख रहा होता हूँ

होंठों की सुर्खी,
चेहरे का नूर,
ज़ेहन की रोशनाई,
कि उरोज हरजाई?

कि बिंदिया,
कि काजल,
कि चूड़ी
कि पायल?

गुलाबी-ऊदी पैरहन,
नितम्बों की थिरकन,
चंचल-चंचल अँखियाँ
में बेबाकी या उलझन

जब मैं तुम्हें देख रहा होता हूँ
तब क्या देख रहा होता हूँ…

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कुशाग्र अद्वैत
कुशाग्र अद्वैत बनारस में रहते हैं, इक्कीस बरस के हैं, कविताएँ लिखते हैं। इतिहास, मिथक और सिनेेमा में विशेष रुचि रखते हैं।अभी बनारस हिन्दू विश्विद्यालय से राजनीति विज्ञान में ऑनर्स कर रहे हैं।

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