जल्दी पड़ी सबको यहां अपने जवाब की,
पर पूछता कोई नहीं हालत किताब की।

जो कांप उठते थे ये बीयर बार देखकर,
वो कर रहे हैं इल्तिजा मुझसे शराब की।

हर बात पे सबसे यहां तकरार कर रहा,
वो कर रहा उम्मीद है मुझसे जवाब की।

अब क्यूं तेरी मुस्कान को इग्नोर मैं करूं,
तेरी अदा में दिख गई खुशबू गुलाब की।

या तो हमारी आंख पे पर्दा है झूठ का,
या रोशनी कम हो गई है आफताब की।

जिस दिन से मैंने प्यार का इज़हार कर दिया,
तब से कशिश भी बढ़ गई है माहताब की।

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