साभार: किताब: जीरो पीरियड | लेखक: अविनाश सिंह तोमर | प्रकाशन: एका वेस्टलैण्ड / हिन्द-युग्म

“गोलू, ओये गोलू! पिक्चर शुरू हो गई, नम्बरिंग स्टार्ट है, आओ जल्दी।” अपने छोटे-से बाथरूम के कमोड पर निशाना साधते गोलू के कान के पर्दों पर ये शब्द पड़ते ही वह फ़ौजी की तरह चौकस हो गया। अपनी कैपेसिटी की आधी सूसू कर चुका गोलू, राजधर्म का पालन करने ख़ातिर आधी सूसू ब्लैडर में वापस खींचकर भागा। दौड़कर कमरे तक पहुँचा। मम्मी उसे घूर रही थीं, उन्हें पता था कि वह सूसू करके कभी हाथ नहीं धोता। गोलू बिना उनके कुछ कहे वापस दौड़ा और पानी के मग्गे में नाख़ून भिगोकर, छिड़कते हुए सरपट दौड़कर वापस आ गया और रज़ाई में घुस गया। चढ़ते हुए तख़त का कोना घुटने पर टक्क करके लगा। सर्दियों में हर छोटी-से-छोटी चोट पहले ब्रेकअप जितना दर्द देती है, पर जीतेंद्र की पिक्चर के लिए इतना दर्द सहना गोलू के लिए मुनासिब सौदा था।

फ़िल्म थी हातिम ताई, पूरे तीन महीने से गोलू इंतज़ार में था कि कब आएगी टीवी पर! अनीश ने अपने घर VCR पर जब से देखी थी, उसने गोलू को सुना-सुना के एकदम हीनभावना से भर दिया था। उसने बताया कि जीतेंद्र उसमें शेर को दे पटखनी दे पटखनी मारता है, और अफ़वाह ये है कि हीरोइन कोई नॉर्मल नहीं, एक परी है, जो कोई बॉम्बे की हीरोइन नहीं, सचमुच ही परी है। और एक फ़िल्म के बाद कभी कोई फ़िल्म नहीं करेगी।

गोलू जीतेंद्र का परम फ़ैन था, अपने पिता जी का मज़ाक़ सुन सकता था, पर अगर जीतेंद्र के बार में किसी ने कुछ कह दिया, फिर गोलू ‘कल्लू से कालिया’ बन जाता था। हर बर्थडे में गोलू जीतेंद्र फ़ेवरेट कोहनी घुमाने वाले स्टेप्स करके वाहवाही लूटता था। एक पिक्चर में जीतेंद्र ने जब 10-12 लम्पटों को बिना ज़मीन पर पैर रखे मारा था, तो उस भौकाल से ओतप्रोत गोलू ने दूसरे मोहल्ले के लड़कों से क्रिकेट मैच में बवाल ले लिया था। अगले दो दिन वह स्कूल नहीं जा पाया था। नहीं, लड़कों ने उतना नहीं मारा, पर लड़ाई की बात पता चलने पर पिता जी के अंदर का धर्मेंद्र जाग गया।

बड़े शायर ने कहा था कश्मीर के लिए कि दुनिया में अगर जन्नत है तो यहीं है, यहीं है, यहीं है। शनिवार की रात रज़ाई में घुसकर घुघरी (ख़ास सर्दियों में, आलू मटर को लहसुन में भूँजकर बनने वाली एक अलौकिक डिश) खाते हुए जीतेंद्र की पिक्चर देखने से बड़ा सुख गोलू के लिए कुछ और नहीं था। सबसे अच्छी बात होती थी कि अगले दिन न ही स्कूल जाना है न ही ट्यूशन, और एग्ज़ाम का भी लफड़ा पास नहीं और क्या चाहिए? गोलू ने आज घर के सारे काम, सब कुछ निपटा लिया था ताकि कोई व्यवधान न पड़े माहौल में। इधर पिक्चर स्टार्ट और उधर मम्मी वीवीएस लक्ष्मण-सी टाइमिंग मैच करती हुई भाप फेंकती घुघरी लेकर आ गईं, और किनारे बैठे गोलू से बोला, “ये वाली कटोरी उसको दे दो, नहीं तो चिल्लाएगी।” गोलू ने अपनी बहन की कटोरी से थोड़ी-सी घुघरी टेढ़ी करके अपनी कटोरी में डाल ली।

“कुत्ते कहीं के! न कीड़ा लगे तुम्हारे पेट में, तो कहना!” गोलू की बहन आग बबूला होकर चिल्लायी।

“अरे और है रसोई में, ले लेना, मरा मत करो तुम लोग दलिद्दर जैसे।” मम्मी खीझते हुए बोली। गोलू ने चम्मच मुँह में ठूँसते हुए, गर्दन नीचे कर खींसें निपोरते हुए बिस्तर को लो-फ़ाइव दे दिया।

पिक्चर स्टार्ट हो गई थी। अब गोलू ध्यान मुद्रा में जाने वाला था। हर वक़्त कच-कच करने वाला गोलू पिक्चर के वक़्त मौनव्रत धारण कर लेता था। पाँच मिनट की फ़िल्म के बाद विज्ञापन आ रहा था, पिक्चर में जीतेंद्र अभी तक बच्चा ही था। गोलू ने बोर होकर दीवार पर थोड़ा-सा टेक लिया और अर्ध-लेटासन में चला गया। ये वह आसन होता है जिसमें न आप पर कोई पूर्णतया लेटे होने का आरोप लगा सकता है और न ही इसमें सीधे बैठेने से रीढ़ में होने वाली पीड़ा होती है। गोलू इस आसन को अक्सर सुबह ब्रह्ममुहूर्त में पढ़ाई के समय प्रैक्टिस करता था। जैसे ही पीछे से आहट हुई, तो खोपड़ी हिला-हिला के बुदबुदाना चालू कर देता था। नहीं तो वैसे ही बैठे-बैठे निद्रासन में स्विच मार देता था।

“लाइट और टीवी ध्यान से बंद कर देना, हम जा रहे हैं कमरे में सोने।”

ये बोलकर मम्मी अपने कमरे में चली गईं। बाहर की सर्दी और रज़ाई के भीतर की गर्मी बहुत ही आरामदायक थी। उधर साइड में रखा हुआ पीला चमकता हीटर यूँ गर्मी दे रहा था मानो कोई दैवीय शक्ति स्वयं गोद में लेटाकर लोरी सुना रही हो। गोलू इंतज़ार कर रहा था कि पिक्चर स्टार्ट हो तो घुघरी खाना स्टार्ट करे, जो उसका पर्सनल कॉकटेल था।

“तकिया चाहिए?” गोलू की बहन ने पूछा।

गोलू को अपने कानों पर विश्वास नहीं हुआ, मुँह बनाकर बोला, “तुमको क्या हो गया आज जो अपनी तकिया दे रही हो?”

“अरे ऐसे ही, हद्द है भलाई का ज़माना ही नहीं है, मत लो, मरो जाके! हमको क्या!” उसकी बहन चिढ़कर बोली।

बाहर गली में कुत्तों के भौंकने की आवाज़ें आ रही थीं और आँगन में लेटे बाबा के खर्राटे प्रेतों के साथ गुप्त दुनिया के रहस्य डिस्कस कर रहे थे। गोलू के मन में अचानक ख़याल आया कि क्या पूजा भी इस समय यही फ़िल्म देख रही होगी? और कल सुबह मैच के बारे में सोचकर तो गोलू ब्लश ही कर गया। आख़िरकार गोलू के तीन महीने के लगातार स्थायी प्रदर्शन और MRF का नया बैट देखने के बाद उससे ओपन कराने का फ़ैसला सर्वसम्मिति से ले लिया गया था। सोचते-सोचते गोलू को याद आयी सामने वाली टीम के नए बॉलर की, जो कलाई से बॉल घुमाने के लिए फ़ेमस था। कलाई से बैठे-बैठे गोलू का ध्यान अपनी बहन की कलाई पर गया, वह समझ नहीं पाया कि वह कैसे अपनी बहन से हर बार मार खा जाता है! फिर उसने अपनी कलाई देखने के लिए हाथ बाहर निकाला और सोचा कि अगर वह कलाई पर ब्लेड से पूजा का नाम लिखे तो क्या वह इम्प्रेस हो जाएगी?

‘पूरा नाम लिखूँ या फिर सिर्फ़ P? पर सिर्फ़ P से तो प्रियंका सिंह, प्रनीता रानी भी है। पूरा ही लिखना पड़ेगा, हिन्दी में लिखने पर कर्व ज़्यादा आएगा, दर्द होगा ज़्यादा, इंग्लिश में ही लिखता हूँ, पर हाथ मम्मी को दिख गया तो! एक काम करता हूँ… फुल…’

ख़यालों के एक जज़ीरे से दूसरे जज़ीरे पर कूदते हुए कब गोलू नींद की घाटी में गिरा, पता ही नहीं चला।

ख़ैर, गोलू की वह छोटी-सी झपकी पूरी हो गई। भवें उचकाकर आसपास का जायज़ा लिया तो कमरे में कोई नहीं था, टीवी बंद था। उसके होंठों के किनारे लार का मोटा निशान था, हाथ में घुघरी की ख़ाली कटोरी। रसोई से बर्तन की आवाज़ आ रही थी। बाहर बाबा मंजन करते-करते, आँतें मुँह के रस्ते से लगभग बाहर निकाल चुके थे। दादी माला लेकर शिव जी को इम्प्रेस करने में लगी थी। चाचा किसी वैज्ञानिक जैसे स्कूटर साफ़ करने के अपने साप्ताहिक रिचुअल को अंजाम दे रहे थे। रेडियो पर पुराने गाने बज रहे थे। और अलाव की ख़ुशबू पूरे घर में फैली थी। सूरज अभी भी कोहरे के कम्बल में मुँह डाले हुआ था, ये पता लगाना मुश्किल था कि सुबह हुई है या शाम गुज़रकर गोधुली की बेला लग गई। गोलू उठकर रसोई की तरफ़ गया तो मम्मी साग काट रही थी, ये देखकर गोलू की आँखें चौंधिया गई।

‘साग मतलब तो सुबह हो गई।’

मम्मी ने गोलू को देखा और बालों पर हाथ फेरकर हँसते हुए बोली, “उठ गए मेरे लाल? जीतेंद्र पूछ रहा था तुमको।”

सुबह के नौ बज चुके थे, उसने आँगन में लगी घड़ी में देखा! मैच सात बजे का था! दिल में कैंची-सी घुस गई! सामने चबूतरे पर बैठी उसकी बहन उसको देखकर खिंखिया रही थी। गोलू को पूरी साज़िश का अंदाज़ा हो गया था। आँखों के सामने रात का फ़्लैशबैक घूम गया, हातिमताई मिस हो गई। तभी बहन ने तिरछी आँखों से गोलू को देखकर कहा, “अरे गोलू उठ गए? पिक्चर बहुत चौकस थी। तुम नींद में थे इसलिए हमने तकिया लगाकर सुला दिया था तुमको। देखा, कितना ख़याल रखते हैं तुम्हारा।” हँसी मुँह में खाकर बोली और फिर ताऊजी से पूछा, “अरे ताऊ जी, आपने कभी रात की बासी घुघरी गरम करके खायी है? बड़ा मज़ा आता है।”

और घर में सभी लोग ठहाके मारकर हँसने लगे, सिवाय जीतेंद्र के परम फ़ैन गोलू के। धीरे-धीरे बाक़ी सारी आवाज़ें हल्की होने लगीं और आँगन में खड़े गोलू के कानों पर बस रेडियो का बैकग्राउण्ड म्यूज़िक गूँज रहा था…

‘जा… जा… जा… बेवफ़ा… कैसा प्यार कैसी प्रीत रे….
तू न किसी का मीत रे… झूठी तेरी प्यार की क़सम।’

ऋषभ प्रतिपक्ष की कहानी 'पीरियड का पहला दिन'

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