क्या बारिश के दिनों धोरों पर गड्डमड्ड होते हैं बच्चे
क्या औरतों के ओढ़नों से झाँकता है गाँव
क्या बुज़ुर्गों की आँखों में बचा है काजल
क्या स्लेट पर घड़ी-भर सुस्ताता है सूरज
क्या युवतियाँ चुन्नी के पीछे छिपाती हैं प्रेमी का नाम
क्या पनिहारियों के सपनों में आता है रोहिड़ा
क्या बिलावने के साथ धड़कती है जीजिविषा
क्या बेरोज़गारों की जेबों में खनकते हैं सिक्के
क्या शहर से लौट आए हैं युवा फिर से लौट जाने के लिए

क्या थार की अँजुरी में बचा है चोंच-भर पानी
क्या मोर की कलंगी पर थिरकता है आषाढ़
क्या रटता है सुआ राम-राम
क्या करधनी पर झूलता है सावन
क्या पहले सावन में बहुएँ चली गई हैं पीहर
क्या कबूतरों के पँखों में छिपी हुई हैं राजकुमारियाँ

क्या रोज़ राजू चमार, खेमाराम के जलते हैं चूल्हे
क्या शंकर चौधरी ने सबके लिए बनायी है खाट
क्या पंडित दीनदयाल नें बिछायी है जाजम
क्या देवाराम की चिलम में बची है चिंगारी
क्या रहीम काका ने सुनायी है मिट्ठी वाली मीठी नज़्म
क्या पंचों ने बचाए हैं चिड़ियाँ के घोंसले
क्या ठाकुरों ने जोते हैं खेत छींटे हैं बीज
क्या महाजनों ने वापिस कर दी हैं गिरवी रखी ज़मीन
क्या एक साथ मिलकर खेतों से भगा रहे हैं टिड्डी दल

मैं क़लम छोड़कर उस तरफ़ की खिड़की खोलता हूँ
जिस दिशा में मेरा भोला गाँव है
एक तेज हवा के झोंके के साथ
चली आती हैं बारिश की बूँदें भीतर तक
और पूछती हैं मुझसे कि—
क्या गाँव के गर्भ से जुड़ी हुई है आज की पीढ़ी की नाल?

Book by Sandeep Nirbhay:

Previous articleअब्राहिम लिंकन का पत्र मेरी ऑवेंस के नाम
Next articleसचेत, प्रेम-प्रमाण, पत्ते का रंग
संदीप निर्भय
गाँव- पूनरासर, बीकानेर (राजस्थान) | प्रकाशन- हम लोग (राजस्थान पत्रिका), कादम्बिनी, हस्ताक्षर वेब पत्रिका, राष्ट्रीय मयूर, अमर उजाला, भारत मंथन, प्रभात केसरी, लीलटांस, राजस्थली, बीणजारो, दैनिक युगपक्ष आदि पत्र-पत्रिकाओं में हिन्दी व राजस्थानी कविताएँ प्रकाशित। हाल ही में बोधि प्रकाशन जयपुर से 'धोरे पर खड़ी साँवली लड़की' कविता संग्रह आया है।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here