जॉन गुज़लॉवस्की (John Guzlowski) नाज़ी यातना कैम्प में मिले माता-पिता की संतान हैं। उनका जन्म जर्मनी के एक विस्थापित कैम्प में हुआ। उनके माता-पिता पोलैंड से थे। वे अमेरिका में रहकर लेखन कर रहे हैं। जॉन का नाम अमेरिका के शीर्ष अमेरिकन-पोलिश कवियों में लिया जाता है। उनकी कविताओं में युद्ध एवं कैम्पों की ज़िन्दगी का सजीव चित्रण मिलता है। साथ ही वे अपने जीवन के विभिन्न घटनाक्रमों के बारे में भी कविता लिखते हैं। जॉन गुज़लॉवस्की की कविताएँ रैटल, नार्थ अमेरिकन रिव्यु, बारेन एवं अन्य जर्नलों में प्रकाशित हैं। उनके कई उपन्यास एवं कविता संग्रह प्रकाशित हैं। जॉन के कविता संग्रह ‘ईकोज़ ऑफ़ टैटर्ड टंग्स’ को बेंजामिन फ़्रेंक्लिन पोएट्री अवार्ड और एरिक हॉफर/मॉन्टन अवार्ड मिल चुका है। वे अमेरिका के सबसे पुराने पोलिश दैनिक अख़बार जीनिक ज़्वियाज़कोवी के लिए स्तम्भ लिखते हैं।
कविता: ‘मेरे लोग’ (‘My People’ from Echoes of Tattered Tongues: Memory Unfolded)
अनुवाद: देवेश पथ सारिया
मेरे लोग
सब ग़रीब लोग थे
उनमें से कुछ जीवित बच गए
मेरी आँखों में झाँकने
और मेरी उँगली छूने के लिए
और कुछ नहीं बचे
वे मर गए बुख़ार, भुखमरी
या चेहरे में धँसी गोली से
वे मर गए ख़ुद को दिलासा देते हुए
कि उनकी मौत के बदले जन्म हुआ
मेरा या किसी और बच्चे का
ऐसी कुछ कहानियाँ सुनाते हैं
ग़रीब लोग सांत्वना के तौर पर
सामर्थ्य जुटाने के लिए
अपनी क़ब्र से रेंगकर निकलने की
उन सभी में पर्याप्त ताक़त नहीं थी
पर कुछ में ज़रूर थी
और इसीलिए मैं यहाँ हूँ
और तुम पढ़ रहे हो
उनके बारे में कविता यह
क्या था जो उन्हें ताक़त देता था?
ताक़त शायद उन लोगों की आत्मा में थी
वे सिफ़र से शुरुआत करते हैं
और सिफ़र पर अंत होता है उनका
और होती है जीवन यात्रा उनकी
एक सिफ़र से दूसरे सिफ़र की
बर्फ़ और दुख के आतंक में
वे बने रहते हैं
बने रहते हैं बारिश में
जब तक कि कोई घोंप नहीं देता
उनके पेट में संगीन
जब तक कोई बीमारी
उन्हें जकड़ नहीं लेती है
वे चलते रहते हैं
भले ही सीढ़ी में फट्टे ना हो
भले कोई सीढ़ी ही ना हो…
जॉन गुज़लॉस्की की कविता ‘युद्ध और शान्ति’