पहले उसने कहा—
भई! मैं
कविताएँ सुन-सुनकर बड़ा हुआ हूँ
हमारे लड़ दादा कवि थे
हमारे पड़ दादा कवि थे
हमारे दादा महाकवि थे
पिता जी अनेकों पुरस्कारों से नवाज़े गए थे
मुझे भी इस बरस फ़लाना पुरस्कार मिला है
यह सब कहकर जब वह
कविता सुना रहा था
तो मैंने
झुँझलाकर कहा—
इन पुरस्कारों की भूंकळी कर लें
और सुनो
खेतिहरों के लिए भाता ले जा रहीं भतवारणें
जब गा रही होती हैं बीच राह
दुःख के दिनों में सुख के गीत
तब उन गीतों के आगे
जुहार करती हुईं
तुम लोगों की पावली कविताएँ पानी भरती हैं
अब आप जाइए
हण्डिया से छलकती छाछ के गीत सुनने दें!