एक लम्बी मेज़
दूसरी लम्बी मेज़
तीसरी लम्बी मेज़
दीवारों से सटी पारदर्शी शीशेवाली अलमारियाँ
मेज़ों के दोनों ओर बैठे हैं व्यक्ति
पुरुष-स्त्रियाँ
युवक-युवतियाँ
बूढ़े-बूढ़ियाँ
सब प्रसन्न हैं

कम-से-कम अभिनय उनका इंगित करता है यही
पर मैं चिन्तित हूँ
देखकर उस वृद्धा को
जो कभी प्रतिमा भी लावण्य की
जो कभी तड़प थी पूर्व राग की
क्या ये सब युवतियाँ
जो जीवन उँड़ेल रही हैं
युवक हृदयों में
क्या ये सब भी
बूढ़ी हो जाएँगी
देखता हूँ पारदर्शी शीशे में
इस इंद्रजाल को
सोचता हूँ—
सत्य सचमुच कड़वा होता है।

विष्णु प्रभाकर
विष्णु प्रभाकर (२१ जून १९१२- ११ अप्रैल २००९) हिन्दी के सुप्रसिद्ध लेखक थे जिन्होने अनेकों लघु कथाएँ, उपन्यास, नाटक तथा यात्रा संस्मरण लिखे। उनकी कृतियों में देशप्रेम, राष्ट्रवाद, तथा सामाजिक विकास मुख्य भाव हैं।