चरमराते तख़त पर
लेटे-लेटे
रात
बहुत देर सोचते रहते वे
करवट बदलने के बारे में,
उनके लिए
करवट बदलने से आसान था
उसके बारे में सोचना,
अपने से अलग
रखा जा सकता था घर को
सोचते हुए।

करवट बदलने पर से
हड़बड़ा सकता है घर
घिर आ सकता है
तख़त के गिर्द,
वे चाहते थे
तख़त
कम से कम दे
अपने होने का प्रमाण।
इसके लिए ज़रूरी था
उनका
बहुत देर एक करवट सोना
और इसके लिए
ज़रूरी था
बहुत देर करवट बदलने के बारे में सोचना।

Book by Jyotsna Milan:

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ज्योत्स्ना मिलन
ज्योत्स्ना मिलन (१९ जुलाई १९४१-५ मई २०१४) हिन्दी की कवयित्री एवं कथाकार थीं। वे स्त्रियों के संगठन 'सेवा' के मासिक मुखपत्र 'अनसूया' की सम्पादक भी थीं। उन्हें महिलाओं के उत्थान तथा उनसे जुड़े संवेदनशील मुददों को अपनी लेखनी के माध्यम से अभिव्यक्त करने में महारत हासिल थी।

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