‘Kavita Ka Arth’, a poem by Madan Daga

मेरी भाषा का व्याकरण
पाणिनि नहीं
पददलित ही जानते हैं
क्योंकि वे ही मेरे दर्द को
पहचानते हैं

मेरी कविता का कमल
बग़ीचे के जलाशयों में नहीं
झुग्गी-झोपड़ियों के कीचड़ में खिलेगा
मेरी कविता का अर्थ
उत्तर पुस्तिकाओं में नहीं
फुटपाथों पर मिलेगा!

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