‘Kavita Ki Saleeb’, a poem by Anurag Anant
तुमने नहीं महसूसा कभी
नदी, नदी में कैसे बहती है
ऊँचाई, ऊँचाई से कैसे गिरती है
बारिश ख़ुद की बूँदों से कैसे भीग जाती है
तन्हाई कितनी तनहा होती है
हँसी के खोखलेपन में
कहीं कोई फूटकर रोता है
ख़ालीपन में भी एक ख़ालीपन होता है
भाषा भी कहना चाहती है कुछ
पर उसके पास भाषा ही नहीं है
तुम्हारे क़दमों के निशान भी चलना चाहते हैं, तुम्हारे साथ
और साँस भी साँस लेना चाहती है
तुमने नहीं महसूसा कभी
तुमने नहीं महसूसा कभी
कद्दूकस पर घिसी जा रही सब्ज़ियों का दर्द
तुमने नहीं महसूसा कभी
क़त्ल करने से पहले ख़ंजर का रोना
तुमने नहीं महसूसा कभी
होने और नहीं होने के बीच तड़प कर मरते हैं
दुनिया के अधिकांश लोग
अच्छा किया जो तुमने नहीं महसूसा कभी
जो महसूसा होता ये सब
कविता की सलीब पीठ पर ढो रहे होते, तुम!
दो शब्दों के बीच बैठे कहीं रो रहे होते, तुम!!
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