वह अजीब-सा ख़बरनवीस है
दिन रात बीनता फिरता है ख़बरें
हत्या बलात्कार चोरी डकैती की
दुर्घटनाओं का साक्षी बनता
बारात और वारदात को
एक ही तरीके से सनसनीखेज़ बनाता

वह अजीब-सा ख़बरनवीस है
पोस्टमार्टम को पीएम
प्रेस कॉन्फ़्रेन्स को पीसी
अपने कम्पयूटर को मशीन
और ख़ुद को अख़बार मालिक के
कारख़ाने का पुर्ज़ा बताता

वह अजीब-सा ख़बरनवीस है
सपने में भी सिर्फ़ हादसे देखता
हर अफ़वाह के पीछे दौड़ लगाता
गड़े हुए मुर्दे उखाड़ता
और उसे एक्सक्लूसिव बताकर
ब्रेकिंग न्यूज़ देता हुआ इतराता

वह अजीब-सा ख़बरनवीस है
360 डिग्री पर आँख घुमाता है
उल्लू की तरह आधी रात तक
गली कूचों पगडण्डियों पर उड़ान भरता
शब्दों से चटपटी स्टोरी और
ख़बरों के लिए मनभावन व्याकरण गढ़ता

वह अजीब-सा ख़बरनवीस है
रात भर जागता
दिन चढ़े तक सोता
नींद पूरी न हो पाने की
किसी से शिकायत नहीं करता
वहाट्सअप के चुटकले पढ़कर हँसता

वह अजीब-सा ख़बरनवीस है
ख़बरों के बीच रहते-रहते
उन्हें ही रात-दिन ओढ़ते-बिछाते
उन पर धरकर भजिया खाते-खिलाते
वह ख़ुद ही बन चुका है
एक अख़बार का आधा-अधूरा पन्ना

वह अजीब-सा ख़बरनवीस है
बड़ी-बड़ी बातें बनाता है
लेकिन रोज़ भूल जाता है
अपनी लगातार कंकाल बनती बीवी को
डॉक्टर को दिखाना
और बच्चों का स्कूल में दाख़िला कराना

वह अजीब-सा ख़बरनवीस है
हर समय जल्दी में रहता है
उसके बच्चे बिना अक्षर ज्ञान किये
बड़े होते जा रहे हैं
वे पानी को पप्पा कहते हैं
और रोटी को अभी भी हप्पा

वह अजीब-सा ख़बरनवीस है
उसे पता है एक दिन उसे भी
किसी रद्दी अख़बार की तरह
दरकिनार कर दिया जाएगा
वह अपनी उदासी की ख़बर में
किसी को साझीदार नहीं बनाता।

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निर्मल गुप्त
बंगाल में जन्म ,रहना सहना उत्तर प्रदेश में . व्यंग्य लेखन भी .अब तक कविता की दो किताबें -मैं ज़रा जल्दी में हूँ और वक्त का अजायबघर छप चुकी हैं . तीन व्यंग्य लेखों के संकलन इस बहुरुपिया समय में,हैंगर में टंगा एंगर और बतकही का लोकतंत्र प्रकाशित. कुछ कहानियों और कविताओं का अंग्रेजी तथा अन्य भाषाओं में अनुवाद . सम्पर्क : [email protected]

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