वजूद की कतरन जोड़ के
हस्ती का लिबास
अब जचे ख़ुद पे
ये शक़ है मुझे
ज़र्रा होकर बिखरने को,
मुस्तैद है मेरी रूह का पैकर
पर अब मार जाता है
मुझे होने का ग़म
मार जाता है मुझे- सिर्फ़ होना ही होना
मुझे ठहरने की ज़िद है कहीं
लेकिन सोंधा-सोंधा उसका हाथ
अब राज़ी नहीं होता
मिट्टी जैसे मेरे हाथों की कुर्बत को..

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