अपने मन में
हर रोज़
तुम्हें एक ख़त लिखता हूँ 
और सारे इकट्ठे करते रहता हूँ,
भेजता नहीं तुम्हें!
सोचता हूँ
कि अपनी भावनाओं के उफान को
हर रोज़ तुमपर उड़ेलना
ठीक नहीं होगा,
तुम्हारी मन की आज़ादी
तुम्हारे अल्हड़पने में
ख़लल पड़ेगा,
तुमको भी ख़त का जवाब देना होगा,
और उसके लिए तुम खूबसूरत शब्द ढूँढोगी।
लेकिन मैं
तुम्हारे मन के इस खुलेपन को
बिगाड़ना नहीं चाहता
क्योंकि इसी खुलेपन से
मैं बेहद मोहब्बत करता हूँ
इसीलिए वो सारे ख़त
मन के कोने में
तह करके रख लेता हूँ
और फिर
जब मेरा स्वार्थ अपने चरम पर आ जाता है
तो लिख भेजता हूँ
तुम्हें एक ख़त
मुख़्तसर सा!
और तुम्हारे जवाब का इंतज़ार करता हूँ।
ये ज़रूरी नहीं है
कि तुम जवाब दो
क्योंकि ख़त का तुम तक पहुंचना ही
उसका जवाब है,
लेकिन फिर भी
जवाब सुनकर अच्छा तो लगता ही है।
इसलिए करता हूँ इंतज़ार।
तुम जवाब में
खत भले ही ना लिखो
पढ़ के मुस्करा दो
महसूस कर लो
यही इस ख़त का जवाब होगा
अगली दफा
जब फिर से तुम्हें ख़त लिखूंगा
तो तुम
उन शब्दों के बीच
बची खाली जगह में छिपे
वो सारे ख़त पढ़ लेना
जो मैंने तुम्हें नहीं भेजे।

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