‘Kitaabein’, a poem by Ekta Nahar

मैं जब पढ़ना सीख रही थी
उस रंगबिरंगी किताब में
‘ब्यूटीफुल’ का विलोम लिखा था ‘अगली’
और उसके साथ बना था
एक लड़की का चेहरा मुहाँसों के साथ
किसी को समझानी नहीं पड़ी मुझे बदसूरती की परिभाषा
मेरी क्लास की लड़कियों में अन्तर करना सीख गयी थी मैं

फिर अगले पेज पर लिखा था ‘फार्मर’
और उसके आगे बना था
बनियान पहने और गले में तौलिया डाले एक आदमी
उसके बाद मैंने किसी लम्बी गाड़ी या बंगले में
देश के किसान की कल्पना नहीं की
मैंने जाना कि किसानों का नसीब ‘ग़रीबी’ है
मैंने अपनी ड्रॉइंग बुक में
बूढ़ा बोझा उठाए हल चलाते दुःखी किसान बनाया था

फिर उन्होंने मुझे सिखाया ‘गुड टच, बैड टच’
कोई कैसे-कैसे छूता है बुरे ढंग से
पर उन्होंने कभी नहीं सिखाया मुझे
कि दोस्त दुःखी हो तो उसे गले लगाकर कैसे प्यार करते हैं
‘गुड टच’ में मैंने कुछ नहीं सीखा

उन किताबों में दोहे, कविताएँ सब गोरे रंग के लिए लिखी थीं
श्याम ने भी कहा कि ‘राधा क्यों गोरी मैं क्यों काला’
मैंने उन्हीं दिनों से अपने काले रंग को कोसना शुरू किया
अपनी कॉपी में मैंने ‘सुंदरता’ का पर्यायवाची ‘गोरा’ लिख लिया था

फिर पढ़ीं मैंने कुछ नसीहतें, सीखें
औरत की आबरू, इज़्ज़त, मर्यादा के बारे में
चरित्र प्रमाण पत्र के लिए मेरा भला होना अपेक्षित नहीं
वह तो अछूते रहने से मिलता है
पढ़ते-पढ़ते मेरा दिमाग़ अभ्यस्त हो गया
कि इज़्ज़त यानी ‘वर्जिनिटी’

मेरे बेटे के लिए भी ली हैं मैंने इस साल कुछ किताबें
पढ़ना सीख रहा है वो
आजकल कहता है ‘बी फॉर बॉय’, ‘जी फॉर गर्ल’
अन्तर पूछ रहा है मुझसे वो!

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