बोलो बेटे अर्जुन!
सामने क्या देखते हो तुम?
संसद? सेक्रेटेरिएट? मंत्रालय? या मंच??
अर्जुन बोला तुरन्त
गुरुदेव! मुझे सिवा कुर्सी के कुछ भी नज़र नहीं आता!

पुलकित गुरु बोले द्रोण
हे धनसंचय! तुम मंत्रीपद वरोगे
काम कुछ भी नहीं करोगे
फिर भी
धन से घर भरोगे
केवल कुर्सी के लिए जियोगे।
और कुर्सी के लिए ही मरोगे।

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मनमोहन झा
मनमोहन झा मैथिली भाषा के विख्यात साहित्यकार हैं। इनके द्वारा रचित एक कहानी–संग्रह गंगा–पुत्र के लिये उन्हें सन् 2009 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित(मरणोपरांत) किया गया।

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