अनुवादः साहिल परमार तथा फूलचंद गुप्ता
तुम्हारी चमर कौं-कौं से मैं तंग आ गई
तुमने तो राग बिना ही नौटंकी कर रखी है
तुम्हारे बाबा क्या गए
तुमने मेरा घर पतुरिया का सराय बना दिया
माँ! ये मेहरिये बहुत फूल गए हैं
माँ! ये सुतरिये बहुत अघा गए हैं
माँ! ये वाल्मीकि वे बहुत बहक गए हैं
वह मिनिस्टर बन गया है
और मुझे मेयर भी नहीं बनने देता
वह डॉक्टर बन गया है
और मुझे कम्पाउंडर भी नहीं बनने देता
वह अफ़सर बन गया है
और मुझे चपरासी भी नहीं बनने देता
महाजन में भी वह
कांग्रेस में भी वह
जनता में भी वह
भारतीय जनता में भी वह
कविता में भी वह
इतिहास में भी वह
चीता भी उसका
हाथी भी उसका
‘कॉलरशीप’ (स्कॉलरशिप) भी उसकी
सबसीडी भी उसकी
लोन भी उसका
वज़ीफ़ा भी उसका
मेरी तो झोली ख़ाली की ख़ाली
वह तो मेरा भाई है
या पराभव का दुश्मन?
उसके बच्चे तो सब हीरो बने फिरते
मेरे मैला ढोते, कचरा सुलटते
यह कैसा इंसाफ़ है माँ
यह तो सरासर बेइमानी है माँ
मुझे तो मेरे बाबा की वसीयत का
इत्ता-सा भाग नहीं मिला
जैसे कि मैं दुजारू
तू भी बहुत बेइमानी करती है माँ
वह तो अब मुझे भाई ही नहीं समझता
उसने तो अपनी भजन-मंडली भी अलग कर ली
उसने तो अपनी महिला-मंडली भी अलग कर ली
उसने तो अपनी व्यवसाय-मंडली भी अलग कर ली
वह तो काशी के बामन-बनिया की तरह
अपने पड़ोस में भी मुझे रहने नहीं देता
वह तो अपने को सेठ-साहूकार समझने लगा है
तूने कैसा न्याय किया है माँ?
उसको तकली दी और मुझे तानपुरा
उसको पोथी-पत्रा दिया और मुझे पिपिहरी
उसको कुण्ड दिया और मुझे छौना?
वह तो हमें छोड़ सवर्णो में घुस गया है
वह तो संघ में भी है और स्वाध्याय में भी
अब तू ही बोल माँ, मैं भला कि मेरा भाई?
तू? और तू? और वह? और वह?
तू मुआ ढेड और वह नासपीटा चमार
तू मुआ गरौंडा और वह नासपीटा ओलगणा
तू मुआ तूरी और वह नासपीटा ओलगणा
तु मुआ ढेड खिस्ता और वह नासपीटा तीरगर
तुम्हारे अकारण के झगड़ों से मैं तंग आ गई
तुमने तो अपने बाबा का नाम डुबो दिया
और मेरा दूध लजाया
भूल गए कल तक सबके गले में लटकती थी मेलिया मटकी
और पीछे लटकता था झाड़ू?
कल तक सब मुड़दाल खाते थे
और आज मुछल्ले मरद बन गए?
आज तू दो पैसे वाला हो गया
और गोश्त खाने लगा तो ग़ुरूर करता है
और तेरे पास दो-पैसा ज़्यादा
तो मुड़दाल खाने वाले को भाई ही नहीं समझता?
मेहरिया पहनता था मादरपाट की पोतनी धोती
सुतरिया पहनता था मादरपाट का चीथड़ा कमीज़
तू पकड़ता था पूँछ
और तू पकड़ता था टाँग
हम सब टंगिया कर लाते थे मुर्दा ढोर कंकाल
और गीदड़ों की तरह जश्न मनाते थे
वो तो अपने बुरे दिन थे
किसी ने पकड़ी कुदाल
तो किसी ने पकड़ी कुल्हाड़ी
किसी ने पकड़ी झाड़ू
तो किसी ने करघा
तुम भूल गए लोग हमें कितना सताते थे
और आज भी सताते हैं
उनके लिए तो तुम आज भी
ढेडों की औलाद हो
भले ही तुम अपने को नीरव पटेल कह लो
या तुम अपने को गौतम चक्रवर्ती कह लो
या तुम अपने को सेम्युअल बेकन कह लो
कहो मैं ज्ञानी
मैं गुणियल
मैं सयाना
कहो तू गधा—तू-खच्चर—तू मूरख
इठलाओ कि जिस सूत के तांतो ने आज़ादी दी
उसे मैंने बुना था
इतराओ कि हरियाली क्रांति को सींचने वाले मशक
की खाल मैंने उतारी थी
मैं तुम्हें कैसे समझाऊँ कि
तुम माँ-जने भाई हो
सब एक ही पेड़ की जड़ें हो
एक चने की दो दाल जैसे
कल तक मैं सब को आटा खिलाती थी
और आज तुमने बंदरबाट का खेल बनाया
आरक्षण की जूठन के लिए
तुम भाई-भाई भौंकने लगे
एक-दूसरे को काट खाने लगे।
तुम भूल गए कबीर दादा को
तुम भूल गए रैदास दादा को
तुम भूल गए माया दादा को
और इतनी जल्दी भूल गए ‘बाबा’ की बात?
तुम सयाने हो
तो अपने अनपढ़ भाई का ख़याल रखो
तुम बड़े हो
तो थोड़ा बड़प्पन दिखाओ
तुम तगड़े हो
तो दुबले को थोड़ा-ज़्यादा दो
सब हिलमिल के रहो
सब मिलजुल के रहो
भेड़िये तो ताक में हैं
तुम्हें दोबारा जंगल में खदेड़ देंगे
तुम दर-दर भटकोगे और तबाह हो जाओगे
तुम्हें वे फिर से नीची मुण्डी चलाएँगे
अपने बाबा की वसीयत तुम फिर से पढ़ो
और आज के बाद कभी मत पूछो
कि मैं बड़ा कि मेरा भाई
तू मुआ ढेड और वो नासपीटा चमार!
अर्जुन डांगले की कहानी 'बुद्ध ही मरा पड़ा है'