टाइगर स्टेट या मध्य प्रदेश का काफ़ी बड़ा हिस्सा बड़े-बड़े पहाड़ों और जंगलों से घिरा है। उन जंगलों में अलग-अलग प्रकार के जीव-जंतु तो हैं ही, पर सबसे ख़ास है बाघ, और बड़े-बड़े पहाड़ों में से एक है मैकल पहाड़। एकलव्य फाउंडेशन, भोपाल से प्रकाशित सुभद्रा उर्मिला मजुमदार की यह किताब ‘मैकल पहाड़ों के बाघ’ यहीं के जीव-जंतुओं और बाघों को लेकर बुनी गई कहानी कहती है। कहानी में बहुत सारी वास्तविकता भी है। बाघ यानी हिंसक प्राणी, इंसानों को देखते ही खाने के लिए टूट पड़ता है—यह बात बिलकुल सही नहीं है। असल में हो यह रहा है कि इंसान अपने स्वार्थ के लिए बाघ और दूसरे जीव-जंतुओं को मार डालना चाहता है जिससे जंगल के प्राणियों को ख़तरा पैदा हो गया है—आख़िरकार हर प्राणी ज़िन्दा रहना चाहता है। मैकल पहाड़ के बाघ भी ख़ुद की रक्षा करने की कोशिश ही कर रहे हैं। पर क्या वे इसमें सफल हो पा रहे हैं? प्रस्तुत है इस किताब के कुछ अंश—
“बहुत दूर, एक रूखे-सूखे और धूल भरे प्रदेश के एक इलाक़े में मैकल पहाड़ हैं। एक-दो पहाड़ नहीं। एक के बाद एक क़तार में, माला की तरह। पर्वतों की माला। नर्मदा नदी के पास-पास उत्तर से दक्षिण को बढ़ते हुए। पूरी की पूरी मैकल पर्वतमाला घिरी है एक घने जंगल से। जंगल कभी पहाड़ के ठेठ ऊपर उठता है, तो कभी नीचे उतरता है, गहरी खाई में। लम्बे-लम्बे काले तनों वाले साल के पेड़ सीधे आकाश की ओर बढ़ चले हैं। पत्तियों के घने झुरमुट वाला महुआ, मगरमच्छ के चमड़े-सी छाल वाला साजा, आम, जामुन, कुसुम, अर्जुन। असंख्य पेड़ हैं जंगल में, गिने नहीं जा सकते। नवम्बर का महीना है। मैकल पहाड़ के जंगल प्रदेश में अँधेरा फीका पड़ रहा है और नीली भोर हो रही है। ओस हौले-हौले माटी पर गिर रही है। पहाड़ पर चढ़ती चली जा रही है शार्दुली। जंगल की सबसे तेजस्वी और शक्तिशाली बाघिनों में से एक।”
यह कहानी शार्दुली और उसके तीन नन्हें शावकों गुलू, मोटू, छोटू की कहानी है।
“पहाड़ चढ़ते-चढ़ते शार्दुली दूर से बह आती गौं-गौं की आवाज़ सुनती है। आवाज़ जानी-पहचानी है। पहाड़ी रास्ते पर गोल पैरों वाली एक जिप्सी चढ़ती जा रही है। शार्दुली जैसे चल रही थी, उसी तरह चलते-चलते पहाड़ के ऊपर की सपाट ज़मीन पर पहुँचती है। सामने वाले जंगल को चीरता पीली धूल से भरा आँका-बाँका रास्ता आगे निकल गया है। शार्दुली एक बार फिर सिर घुमा पीछे नज़र डालती है। गुलू, मोटू और छोटू समझ जाते हैं कि माँ कह रही है, साथ-साथ चलना, पीछे न रह जाना।
जंगल के प्राणी हमेशा इंसानों की तरह शब्दों से बात नहीं करते, कभी-कभी आँखों से बेआवाज़ भी बोलते हैं। समझने वाले उसे ठीक समझ लेते हैं, दूसरों को कुछ भी सुनायी नहीं देता।”
जंगलों में बाघ को देखने उमड़ी पर्यटकों की भीड़ से होने वाली दिक़्क़तें शायद ही कोई बाघ आपसे किसी दिन कह पाए। लेकिन इस किताब के ज़रिए शायद वह बातें आप तक पहुँचे…
“ठीक उसी समय जिप्सी के रुकने की घेंच आवाज़ आती है। और साथ ही साथ आती है इंसानों की आवाज़ें।
“बाघ! सर बाघ!”
“बाघ, बाघ।”
“साथ में बच्चे!”
शान्त जंगल थरथरा उठता है। देखते ही देखते और जिप्सियाँ भी आ पहुँचती हैं। सब भयंकर शोरगुल शुरू कर देते हैं।
“तुम लोगों ने देखा?”
“बस अभी ही तो अन्दर गए हैं।”
“कितने थे?”
“दो तो थे ही।”
“अभी गए, रास्ता पार करके।”
गुलू एक नन्ही बाघिन है। बच्चों के मन में तो कई सवाल उमड़ते ही रहते हैं। वैसे ही गुलू के मन में भी इंसानों को देखकर कई तरह के सवाल आते हैं…
“इंसान बड़ा ही अजीब जीव है, गुलू सोचती है। बहुत अक़्लमन्द हो ऐसा लगता तो नहीं है। अगर वे सच में जंगल के प्राणियों को देखने आते हैं तो फिर इतना शोर-शराबा क्यों करते हैं! क्या वे समझते ही नहीं हैं कि चीख़-पुकार करने से जीव-जन्तु परेशान होकर दूसरी जगह चले जाते हैं? गुलू पूरे ध्यान से हाथी की पीठ पर सवार लोगों को देखती है। कैसे पतले-पतले हाथ-पैर हैं। यक़ीनन ये कमज़ोर जात के जन्तु हैं, गुलू मन ही मन तय करती है। पर उनके शरीर की खाल देखकर वह मुग्ध है। चमड़ी कितनी पतली है उनकी, हवा के झोंके में ख़ूबसूरत तितली की तरह हिल रही है। तो क्या इंसान तितली की तरह उड़ भी सकते हैं? सोचते ही गुलू समझ जाती है कि वह बेवक़ूफ़ी भरी बात सोच रही है। इंसान अगर उड़ पाता तो उसे जंगल में घूमने के लिए हाथी और जिप्सी की पीठ पर सवार ही क्यों होना पड़ता?”
कोंदा इस जंगल का सबसे शानदार और ताक़तवर बाघ था। लेकिन कुछ दिनों से वह ग़ायब हो गया था। पूरे जंगल को इस बात की चिन्ता थी। सभी ने तय किया कि एक मीटिंग बुलायी जाए…
“मीटिंग की बात से अकेली शार्दुली ही चकित नहीं हुई थी। जिसने भी सुना, मुँह बाए रह गया। जंगल में कभी कोई सभा हुई हो, ऐसा किसी को याद नहीं आया। इसके अलावा एक समस्या भी तो है। वहाँ सभी मौजूद होंगे। इतने दिनों से जिनका पीछा किया या जिनके डर से भागे उनके साथ बैठना होगा, यह सोचकर कोई भी ख़ास प्रसन्न नहीं हो सका। सभा के दौरान ही किसी बाघ या तेंदुए को भूख लग आयी तो? असल में यह इतनी चिन्ता की बात नहीं थी। हज़ारों-हज़ार बरस पहले जब जंगल के नियम-क़ानून बन रहे थे, तब एक क़ानून बनाया गया था।
इसमें कहा गया था: अगर कभी भी कोई ऐसी घटना या बात होती है जिसकी वजह से जंगल में ढेरों पशुओं के मारे जाने या उनको नुक़सान पहुँचने की आशंका हो, तो जंगल के सभी बाशिन्दों की मीटिंग बुलायी जा सकती है। जितनी देर यह मीटिंग चलती है उतनी देर, कितनी भी भूख क्यों न लगे, किसी पर हमला नहीं किया जा सकता। जो भी हमले का अपराधी होगा, उसे जीवन भर के लिए जंगल से बाहर चले जाना होगा। मीटिंग ख़त्म होने के बाद जब सब सुरक्षित जगह पहुँच जाएँ तब ही जंगल का स्वाभाविक कामकाज चालू होगा।”
दिन में पर्यटकों की आवाजाही और शोर-शराबे से जंगल के बाशिन्दे तो परेशान थे ही, लेकिन रात में शिकारियों ने भी चहलक़दमी शुरू कर दी थी। अब रात में ज़रा भी हलचल होती तो बाघों का दिल दहल जाता…
“क्या लगता है, गोली लगी होगी?” कर्कश आवाज़ में एक ने पूछा।
“पता नहीं। लगता तो नहीं है”, दूसरी आवाज़ ने जवाब दिया।
“कल समझ आएगा। ये बेहद शैतान होते हैं।”
ये लोग समझ गए हैं कि शार्दुली आसपास नहीं है, सो खुली आवाज़ में बोल रहे हैं।
उनके पैरों तले कुचले हुए सूखे पत्ते मचमचा रहे हैं। वे इतने पास हैं कि उनकी साँसों की आवाज़ तक सुनायी दे रही है। यह सुनकर डर के मारे तीनों की साँसें रुक गयीं। गुफा में ठण्डी हवा का एक झोंका आया और उन्हें कँपकँपा गया, ठीक उस दोपहर की तरह।
“यहीं कहीं रहते हैं वे”, ज़ोरदार आवाज़ ने कहा।
“बच्चे हैं, यहीं कहीं हैं”, कर्कश आवाज़ बोल उठी।
बात ख़त्म करने के पहले ही टॉर्च की रोशनी गुफा के मुँह पर चमक उठी। गुलू, छोटू और मोटू पत्थरों में घुल-मिल गए हैं। पत्थर की काली दीवार रोशनी में थरथरा गई।
“बच्चों को पकड़ने की कोशिश करूँ क्या?” तीसरी आवाज़ ने जानना चाहा।
“कोई फ़ायदा नहीं। इतना-सा चमड़ा, ख़ास दाम भी नहीं मिलेगा।”
“और कुछ महीने इन्तज़ार कर लें। फिर तीन-तीन अच्छे आकार के चमड़े मिलेंगे, सोचो ज़रा!” कर्कश आवाज़ वाला हँस पड़ा।
शार्दुली अकेली नहीं थी जिसकी जान को ख़तरा था। जंगल में और भी बाघ, तेंदुए, शेर और चीते थे, जिनका शिकार करने इंसान रात को आते थे। शार्दुली को अपना जंगल छोड़कर जाना पड़ा। क्या वह अपने जंगल वापस कभी आ पायी? अपनी जान बचाने के लिए जंगल के इन बाशिंदों ने क्या तरकीब आजमायी? क्या गाँव के कुछ लोगों ने इनकी मदद की होगी? क्या गुलू, मोटू और छोटू अपनी मान से दोबारा कभी मिल पाए?
क्या वे सभी बाघ जो जंगल छोड़कर गए? वे वापस कभी आ पाए?
यह सब जानने के लिए आप किताब पढ़ सकते हैं। किताब का नाम है ‘मैकल पहाड़ों के बाघ’।
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