मैं वह औरत हूँ जो जाग उठी है
अपने भस्‍म कर दिए गए बच्‍चों की राख से
मैं उठ खड़ी हुई हूँ और
बन गयी हूँ एक झँझावात

मैं उठ खड़ी हुई हूँ
अपने भाइयों की रक्‍तधाराओं से
मेरे देश के आक्रोश ने मुझे अधिकार-समर्थ बनाया है
मेरे तबाह और भस्‍म कर दिए गए गाँवों ने
दुश्‍मन के ख़िलाफ़ नफ़रत से भर दिया है।

मैं वह औरत हूँ
जो जाग उठी है
मुझे अपनी राह मिल गई है
और कभी पीछे नहीं लौटूँगी

मैंने अज्ञानता के
बन्‍द दरवाज़ों को खोल दिया है
मैंने सोने की हथकड़ि‍यों को
अलविदा कह दिया है
ऐ मेरे देश के लोगों,
मैं अब वह नहीं, जो हुआ करती थी
मुझे अपनी राह मिल गई है
और कभी पीछे नहीं लौटूँगी।

मैंने देखा है नंगे पाँव,
मारे-मारे फिरते बेघर बच्‍चों को
मैंने मेंहदी रचे हाथों वाली दुल्‍हनों को देखा है
मातमी लिबास में
मैंने जेल की ऊँची दीवारों को देखा है
निगलते हुए आज़ादी को अपने मरभुक्‍खे पेट में

मेरा पुनर्जन्‍म हुआ है
आज़ादी और साहस के महाकाव्‍यों के बीच
मैंने सीखे हैं आज़ादी के तराने
आख़िरी साँसों के बीच,
लहू की लहरों और विजय के बीच
ऐ मेरे देश के लोगों, मेरे भाई
अब मुझे कमज़ोर और नाकारा न समझना
अपनी पूरी ताक़त के साथ मैं तुम्‍हारे साथ हूँ
अपनी धरती की आज़ादी की राह पर

मेरी आवाज़ घुल-मिल गई है
हज़ारों जाग उठी औरतों के साथ
मेरी मुट्ठियाँ तनी हुई हैं
हज़ारों अपने देश के लोगों के साथ

तुम्‍हारे साथ मैंने अपने देश की ओर
कूच कर दिया है
तमाम मुसीबतों की, ग़ुलामी की
तमाम बेड़ियों को
तोड़ डालने के लिए

ऐ मेरे देश के लोगों, ऐ भाई
मैं अब वह नहीं, जो हुआ करती थी
मैं वह औरत हूँ जो जाग उठी है
मुझे अपनी राह मिल गई है
और मैं अब कभी पीछे नहीं लौटूँगी।

कात्यायनी की कविता 'सात भाइयों के बीच चम्पा'

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