‘Main Nahi, Tum’, a poem by Niki Pushkar

हाँ,
वह व्यक्तित्व का गाम्भीर्य ही था कि
जिसके सम्मुख
मुखर होता गया निरा संकोची स्वभाव,
वह अटल धैर्य का सान्निध्य ही था कि
जिसके आगे
अशिष्टताएँ खुलकर बोलने लगीं,
वह विश्वास की पराकाष्ठा ही थी कि
खुलकर
क्रोध, सीमाओं का उल्लंघन कर बैठा,
वह विवेक की गरिमा ही थी कि
जिसकी आड़ में
वाणी धृष्ट होती गई…

सुनो…
मेरे संकोच के बाग़ी होने में
तुम्हारे व्यक्तित्व का हाथ है,
मेरी अशिष्टताओं के लिए
तुम्हारा धैर्य उत्तरदायी है,
मेरा क्रोधी आचरण
तुम्हारे विश्वास की चूक है,
मेरी वाणी की धृष्टता के लिए
तुम्हारा विवेक जवाबदेह है
और सुनो…
मेरे प्रत्येक दुर्व्यवहार के लिए
मैं नहीं सदैव ‘तुम’ ज़िम्मेदार होंगे…।

२८/१०/२०१९

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निकी पुष्कर
Pushkarniki [email protected] काव्य-संग्रह -पुष्कर विशे'श'

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