‘Main Pahad Hona Chahta Hoon’, a poem by Vishal Andhare

हाँ, मैं पहाड़ होना चाहता हूँ

मेरे शरीर से उग आएँ वो
बरगद, पीपल, साग
और बढ़ते रहें आसमान की ओर

मैं लदना चाहता हूँ
उन सभी वृक्षों से
जिन्हें काट दिया गया था
जंगल से शहर बनने की प्रक्रिया में

मेरे अन्दर से निकले दरख़्तों को
मिल जाए थोड़ा पानी
इसलिए
तुम बनाना
इस पहाड़ पर कुछ गड्ढे
मैं पृथ्वी के बदलते रंग को फिर से
कुछ हरा बनाना चाहता हूँ

पीढियों से काटते ही
आये हो तुम इन्हें
कभी तुम्हारी भूख
कभी तुम्हारे भविष्य के हेतु
तुमने बनायी थीं इन्हीं से
महाज्ञानी किताबें
इनके भविष्य को ख़त्म करके

तुम्हारी कंक्रीट की धरती पर
अब कहाँ बचीं जगह इन वृक्षों के लिए
तो सोचा इन्हीं को गोद ले लूँ
उन अनाथ बच्चों की तरह

मैं पहाड़ हूँ, ईश्वर नहीं हूँ
तुम मानव, मानव भी नहीं रहे
ईश्वर बन गए हो इस पृथ्वी के

आओ बेशर्मो!
अब इन हाथों को तो रोको
जो अब वृक्षों को ख़त्म कर
पहाड़ों पर अपनी
ललचायी नज़रें गड़ाये
खुदाई करने आये इन लालचियों को तो रोक ही लो

तभी भविष्य में
एक था पेड़, एक था पहाड़
इन कहानियों से बच पायेगी
तुम्हारी अगली नस्ल।

यह भी पढ़ें : कविता ‘पेड़ों के छिपाकर रखी तुम्हारे लिए छाँव

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