मैं, सोफा, शराब और वो,
राते यूँ ही काटा करते थे,
घूंट-घूंट में हर लम्हे को,
हम यूँ ही गुजारा करते थे।

मैं, सोफा, शराब और वो,
और दुनिया से एक दूरी, बस,
बातें, नज्में, फिल्में, किस्से,
और इश्क़ की सुरुरी, बस।

मैं, सोफा, शराब और वो।

भारत कुरडा
कल्पनाओं को शब्दों के जरिये बयां करने की कोशिश करता हूं, कवी नहीं हूं, पर कविता लिखने की कोशिश करता हु, मेरे मन का हर ख्याल मैं पंक्तियों में पिरोता हु, रातों को वो सब कागज़ पे उतारता हु,जो दिन भर बोझ मन में लिए ढोता हु।