मैंने देखा है बादल पिघलते हुए
आसमानों को बारिश में ढलते हुए

लोग कहते, परिंदों के पर होते हैं
मैंने देखा है उनको भी चलते हुए

चांद को भी ठहरना नहीं भाता है
मैंने देखा है उसको टहलते हुए

गहरे कितने अंधेरे हैं होते मगर
मैंने देखा च़रागों को जलते हुए

जिस जगह रात का पहरा होता घना
मैंने देखा है सूरज निकलते हुए!

Previous articleसियासत और मोहब्बत
Next articleतक़लीफ़ बढ़ा दो

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here