तन की दूरी क्या कर लेगी
मन के पास रहो तुम मेरे
देख रहा हूँ मैं धरती से
दूर बहुत है चाँद बिचारा
किन्तु कहा करता है मन की
बातें वह किरणों के द्वारा
सपना बन कुल रात काट दो
चाहे जाना चले सवेरे
तन की दूरी क्या कर लेगी
मन के पास रहो तुम मेरे
चिन्ता क्या मैं करूँ तुम्हारी
ख़ुद को ही जब बना न पाया
सच पूछो तो मन बहलाने
को ही कुछ गीतों को गाया
याद नहीं मेरे नयनों के
कितने आँसू गीत बने रे
तन की दूरी क्या कर लेगी
मन के पास रहो तुम मेरे
जीवन से मैं खेल खेलता
और प्राण का दाँव लगाता
मेरी ही बिगड़ी मिट्टी से
मूर्ति बनाता नयी विधाता
मुझ जेसे को डर ही क्या है
मरण मुझे कितना ही घेरे
तन की दूरी क्या कर लेगी
मन के पास रहो तुम मेरे!
रमानाथ अवस्थी की कविता 'ऐसी तो कोई बात नहीं'