वह चिड़िया जो मेरे आँगन में चिल्लायी
मेरे सब पिछले जन्मों की
संगवारिनी-सी इस घर आयी;
मैं उसका उपकार चुकाऊँ किन धानों से!
हर गुलाब को जिसने मेरे गीत सुनाए
हर बादल को जिसने मेरा नाम बताया
हर ऊषा को जिसने मेरी मालाएँ दीं
हर पगडण्डी पर जिसने मुझको दुहराया
मैं उस चिड़िया को दुहराऊँ किन गानों से!
वह जो मेरी हर यात्रा में मेरे आगे डोली
अन्धकार में टेर पकड़कर जिसकी मैंने राह टटोली
जिसने मुझको हर घाटी में, हर घुमाव पर आवाज़ें दीं
जो मेरे मन की चुप्पी का डिम्ब फाड़कर मुझसे बोली
उसको वाणी दूँ? किस मुख? किन अनुमानों से?
वह जिसको मैंने अपनी हर धड़कन में महसूस किया है
वह जिसने नदियाँ जी हैं, आकाश जिए हैं, खेत जिया है
वह जो मेरे शब्द-शब्द में छिपी हुई है, बोल रही है
वह जिसने दे अमृत मुझे, मेरे अनुभव का ज़हर पिया है
मैं उसको उपमा दूँ, तो किस नीलकण्ठ, किन उपमानों से??
श्रीकान्त वर्मा की कविता 'जलसाघर'