‘Manasthiti’, a poem by Rakhi Singh
जब उसके इर्दगिर्द सब कुछ सामान्य रहा
वो गुमसुम रहती,
उदासी से भरे दिनों में वो
सबसे ज़्यादा मुस्कुराती पायी गई,
क्षोभयुक्त समय में उसने अपनी समस्त ऊर्जा
अपने भीतर दबाए रखी,
खीझ वाली अवस्था में वो वाचाल रही
पिछली बार, दिल टूटने के मौसम में
बाल छोटे करवाये गए थे
इस दफ़े केश बढ़ाने की ठानी है
नायिकाओं के हावभाव से
उनकी मनःस्थिति का अनुमान लगाना…
बड़ा कठिन था!