मंदिरों में प्रवेश से पहले
निषेध है
काम-वासना की इच्छा का होना,
मध्य प्रदेश का खजुराहो और
कोणार्क का सूर्य मंदिर,
शायद मंदिरों की श्रेणी में नहीं आता,
इन मंदिरों की दीवारों पे बनी
कलाकृतियों को बनाया था
प्रेम में डूबे मूर्तिकारों ने,
जिनको वरदान मिला था ‘कामदेव’ से
जीवन भर प्रेम करने का।
बाँकी बने सभी मंदिर,
जिनकी दीवारें खाली हैं
और जो चींख-चींख कर
कर रही हैं
अपनी पवित्रता का गुणगान,
इन मंदिरों के भीतर रखी मूर्तियों को
बनाया है उन मूर्तिकारों ने,
जिन्होंने प्रेम में खाए हैं धोखे,
जिनको दुत्कार कर भगा दिया गया था
कामदेव द्वारा।
भीतर पड़ी मूर्तियाँ हैं निष्प्राण,
इनके भीतर वास करने वाले,
देवी-देवता अब भी खड़े हैं
मंदिरों की चौखटों के बाहर,
उन्हीं मूर्तिकारों के भेष में,
जिन्होंने उन्हें बनाया था,
और जो अब भी हैं इंतज़ार में,
कि लौट आए उनका प्रेम,
समाज की नज़रों से बच कर
और दोनों साथ मिलकर समा जाए,
मंदिरों में रखी उन
निष्प्राण मूर्तियों के भीतर,
अंधा समाज लगा दे
जिन पे पवित्र होने का ठप्पा,
और रोक दे उन लोगों को
मंदिरों की चौखटों के बाहर,
जो पूजते हैं ‘कामदेव’ को
और अंदर छिपाये बैठे हैं
‘काम-वासना’ की इच्छा।