दूसरे-दूसरे कारणों से मारा जाऊँगा
बहुत अधिक सुख से
अकठिन सहज यात्राविराम से
या फिर भीतर तक बैठी
जड़ शान्ति से
लेकिन नहीं मरूँगा
कुशासन की कमीनी चालों से
आए दिन के मिथ्या स्पष्टीकरणों से
रेल आरक्षण की अनुपलब्धता से
पत्नी, बच्चों की लौट आने की
गुहार से तो क़तई नहीं
अनमिले मित्रों के भटकाव भरे
रास्तों पर चलने से बिल्कुल नहीं
इस सूखी धरती के
आक-धतूरे की प्यास देखकर
शायद और भी अधिक
जीवित हो रहूँगा।
ऋतुराज की कविता 'अँधेरे में प्रार्थना'