मेरा मौन
मेरे मौन का अनुवाद करना,
स्मृतियों को तुम आकार देना
दैहिकता से आगे बढ़
फिर मुझको गढ़ना।
आलिगंन की ऊष्मा का,
ताप बिखेर देना
मेरे सीने में
जहाँ सुस्त पड़ी है
सदियों से जिजीविषा।
मौन से संवाद
मेरे मौन से की गई
तुम्हारी बातों का स्वाद
ज़ुबाँ से उतरता नहीं,
मुझ बंजर पर उगे हो
तुम दूब जैसे।
नौनिहाल मेरा प्रेम
प्रेषित होगा तुम तक
दसों दिशाओं से।
और आँखें मूँद
तुम छूना मुझे।
अंतस से-
अपना स्पर्श
रख देना तुम
मेरी हथेलियों पर,
जिसकी गरमाहट
समय पर पड़ी बर्फ को
पिघलाती रहे।
-डॉ. सांत्वना श्रीकांत