काम भारी है और पगार में कोई इज़ाफा
सदियों से हुआ नहीं।
नाईट ड्यूटी का अलग मुआवज़ा
पहली डिमांड है।
सुपरवाइज़र, परेशान, दुआ गो है
‘मालिक फ़रिश्तों की नई खेप
दरकार है।’
नए आदमी की सस्ती ज़िन्दगी
रूह क़ब्ज़ करने वाले फ़रिश्तों पर बोझ है।
कहाँ कहाँ जाएँ, हर मुल्क से
इमरजेंसी कॉल है,
और जो ज़िंदा ही मरे जाते हैं
उनके लिए अलग डिपार्टमेंट खोला जाये,
या कम से कम बच्चों का खाता
थोड़ा पीछे खोला जाये।
मालिक, फ़रिश्तों की नई खेप दरकार है!

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उसामा हमीद
अपने बारे में कुछ बता पाना उतना ही मुश्किल है जितना खुद को खोज पाना.

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