1

हर बार
उस बड़ी चरखी पर जाता हूँ
जो पेट में छुपी हुई मुस्कान
चेहरे तक लाती है
कई लोग साल-भर में इतना नहीं हँसते
जितना खिलखिला लेते हैं कुछ मिनट
मेले में उस चरखी पर बैठकर

हर बार मैं
चरखी से वापस लेने जाता हूँ
पिछली बार कुछ और झूल लेने की
छूट गयी इच्छा को

नौनिहालों को छोड़कर
हर वह व्यक्ति
जो चरखी के टिकट की क़तार में है
उसी छूट गयी इच्छा के पूरे होने के
इन्तज़ार में है।

2

मेले में इतना कुछ है
जितने की जगह नहीं मेरे पास
ख़रीदे से ज़्यादा छोड़ आता हूँ मेले में
अगले बरस लौटता हूँ
उसी छूटे हुए को लाने

बरस-दर-बरस लौटता रहेगा मेला
जब तक चाहा हुआ
सबकुछ न ख़रीद लें हम सब

साश्वत रहे यह समीकरण
न चाह हो ख़त्म, न ही मेला।

3

मेले की भीड़ में
हर व्यक्ति के साथ आता है
उसका एकान्त
लोग मिलते हैं, घूमते हैं और लौट जाते हैं

मेले के बाद
मेले की जगह में भर जाता है
लोगों का सामूहिक एकान्त।

4

मेला है
राममय है सब कुछ
कुछ लोग बेच रहे हैं बच्चों के लिए
लकड़ी और काग़ज़ के बने
धनुष-बाण

पुलिस की दो जीपें हैं मैदान में
उनकी बन्दूक़ें बता रही हैं
कि रावण छुपा है
भीड़ में ही कहीं आस-पास।

योगेश ध्यानी की कविता 'प्रेम मेरे लिए'

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