तुम्हारा राम…
हाँ तुम्हारा राम तुम्हें
चुनावों की सभाओं में नजर आता है
जब ऊँची-नीची होती तुम्हारी सरकारें
तुम्हारे द्वारा बनाये जा रहें सेतुपथ पर
डगमगा जाती हैं
हाँ तब तुम्हें तुम्हारा राम नजर आता हैं

मेरा राम…
मेरा राम तो हर कण में हैं
स्त्री, पुरुष, सजीव, निर्जीव
जल, थल, नभ, धरा

तुम्हारा राम…
तुम उसे मंदिर में रखना चाहते हो
फिर उसी मंदिर के बाहर
दो राम भक्त होंगे
एक जो अंदर जा सकेगा
एक जो बाहर सीढ़ियों किनारे
अपने शरीर पर
कूबड़ लिए, कहीं हाथों में पटी बांधे
पहले वाले भक्त से वो आते जाते
हाथ फैलाए भीख मांगेगा…

मेरा राम…
वो सबका है
एक ही हृदय है उसका
उसी में सब रहते हैं!

अजनबी राजा
राजस्थान के जोधपुर जिले से , अभी स्नातकोत्तर इतिहास विषय मे अध्यनरत हूँ ।