रात की कोख से
सुब्ह की एक नन्ही किरन ने जनम यूँ लिया
शब ने नन्ही शफ़क़ की गुलाबी हसीं मुट्ठियाँ खोलकर
कुछ लकीरें पढ़ीं
और सबा से न मालूम चुपके से क्या कह दिया
यूँ कि शबनम की आँखों से आँसू बहे
इक सितारा हँसा
चाँदनी मुस्कुराती हुई चल पड़ी
और नक़ाहत से पहलू बदलते हुए
चौंककर मेरी माँ ने बड़े शौक़ से
कुछ इशारा किया
आहटों और सरगोशियों में किसी ने कहा
आह लड़की है ये
इतनी अफ़्सुर्दा आवाज़ मेरे ख़ुदा
मेरी पहली समाअत पे लिक्खी गई
मेरी पहली ही साँसों में घोला गया
इन शिकस्ता से लहजों का ज़हरीला-पन
आह लड़की है
लड़की है
लड़की है ये
इसकी क़िस्मत की माँगो दुआ
अब भी मेरी समाअत पे लिक्खी है वो
मेरे पुरखों की पहली दुआ!
इशरत आफ़रीं की नज़्म 'टारगेट किलिंग'