‘Meri Kalpnaaon Ki Titliyaan’, a poem by Pallavi Vinod.

मेरी कल्पनाओं की तितलियाँ
जिन्हें तुम्हारा साथ एक सुंदर उपवन सा आकृष्ट करता है
वो बैठना चाहती हैं
तुम्हारे मुझे दिए गए सम्बोधनों की मिठास पर
और छू लेना चाहती हैं उन सभी पलों को
जो तुम्हें और मुझे अंगबद्ध करते हैं

तुम्हारे शिशु रूप के साथ खेलती वो तितलियाँ
उन उँगलियों में अपने रंग देखना चाहती हैं
फिर तुम्हारे स्नेह से आश्वस्त होकर
तुम्हारी हथेलियों पर ठहरना चाहती हैं।

तुम्हारे अंदर जमी कँटीली झाड़ियों से
इन्हें डर नहीं लगता
क्योंकि तुमसे परे इन्हें कुछ पाना भी नहीं हैं
प्रेम के सरोवर में आकंठ डूबी ये तितलियाँ
मुमूर्ष की अवस्था में हैं
तुम्हारे हाथों से दो तुलसी पत्र और एक घूँट जल पाकर तुम्हारे उपवन की रज में ही
सो जाना चाहती हैं।

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