तुम जलाकर दिये, मुँह छुपाते रहे, जगमगाती रही कल्पना
रात जाती रही, भोर आती रही, मुसकुराती रही कामना

चाँद घूँघट घटा का उठाता रहा
द्वार घर का पवन खटखटाता रहा
पास आते हुए तुम कहीं छुप गए
गीत हमको पपीहा रटाता रहा

तुम कहीं रह गए, हम कहीं रह गए, गुनगुनाती रही वेदना
रात जाती रही, भोर आती रही, मुसकुराती रही कामना

तुम न आए, हमें ही बुलाना पड़ा
मंदिरों में सुबह-शाम जाना पड़ा
लाख बातें कहीं मूर्तियाँ चुप रहीं
बस तुम्हारे लिए सर झुकाता रहा

प्यार लेकिन वहाँ एकतरफा रहा, लौट आती रही प्रार्थना
रात जाती रही, भोर आती रही, मुसकुराती रही कामना

शाम को तुम सितारे सजाते चले
रात को मुँह सुबह का दिखाते चले
पर दिया प्यार का, काँपता रह गया
तुम बुझाते चले, हम जलाते चले

दुख यही है हमें तुम रहे सामने, पर न होता रहा सामना
रात जाती रही, भोर आती रही, मुसकुराती रही कामना..

गोपाल सिंह नेपाली
गोपाल सिंह नेपाली (1911 - 1963) हिन्दी एवं नेपाली के प्रसिद्ध कवि थे। उन्होने बम्बइया हिन्दी फिल्मों के लिये गाने भी लिखे। वे एक पत्रकार भी थे जिन्होने "रतलाम टाइम्स", चित्रपट, सुधा, एवं योगी नामक चार पत्रिकाओं का सम्पादन भी किया। सन् १९६२ के चीनी आक्रमन के समय उन्होने कई देशभक्तिपूर्ण गीत एवं कविताएं लिखीं जिनमें 'सावन', 'कल्पना', 'नीलिमा', 'नवीन कल्पना करो' आदि बहुत प्रसिद्ध हैं।